Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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- ( प्रभाव - प्र ) 1
स्वाधिक 'म' 7/1 ] भागमे तस्सभद्दताए
[ ( प्रागमेस ) + (प्रस्स) + (भद्दताए ) ] [ ( भागमेस) वि - ( प्र . स्स) वि - ( भद्दत ) 4/1] कम्मं (कम्म) 2/1 निबंध
(निबंध) व
3/1 सक
स्वाधिक 'य
79. सुपस्स (सुग्र) 6/1 भाराहलयाए (भाराह श्राराहरणया) 3 / 1
स्त्री-लिंग
(घ) वाक्यालंकार मंते (मंत) 8/1 वि जीवे (जीव) 1/1 कि ( कि) 2 / 1 वि जरणय (जरणय६ ) प्रेरक व 3 / 1 मक पनि. अन्नार्ण (पन्ना) 2 / 1 सवेह (सव) व 3 / 1 सक न ( प्र ) = नहीं व (प्र) = पीर संकिलिस्सह ( संकिलिस्स) व 3 / 1 प्रक
·
--:
80. एगग्गमरणसन्निवे सखयाए [ (एग ) + (भरग) + (मण) +
'य' स्वामिक (मन्निवेसण पाए ) ] [ (एग ) - (भग्ग ) - ( मरण) - ( सन्निवेमरण -+ स्त्री-लिंग सन्निवेसरया) 3 / 1] वर्ग (प्र) वाक्यालंकार भंते ( मंत) 8 / 1 वि बोबे (जीव) 1/1 कि ( कि) 2/1 वि जायद ( जरणयइ) प्रेरक ब 3 / 1 सक अनि चित्तनिरोहं [ (चित्त) - (निरोह) 2/1] करेद्र (कर) व 3/1 सक
-
न ( प्र ) = वाक्यालंकार भंते कि ( कि) 2 / 1 वि जयद निस्संगतं ( निस्संगत ) 2 / 1 (एग ) 1 / 1 सवि एगग्गचि [ ( एगरन ) - (बिस) 1 / 1] बिया ( प्र ) = दिन मे बा (भ) =
[ 87
81. अपविद्धयाए (पपरिबद्धया) 3 / 1 ( मंत) 8 / 1 वि जोवे (जोन) 1 / 1 ( जय) प्रेरक व 3 / 1 सक भनि निस्संगसंग (निस्संगत ) 3 / 1
एगे
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