Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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145. न (प्र)नही तं (न) 211 मवि प्रगे (प्रति || कंठयेता
[(कंठ-छेत्त.) 111 वि] करे (कर) व 3/16 (1) 11 सवि से (प्र-वाक्य की गांभा करे (कर) व 3/2 मक प्रप्पणिया (पणिय) 1/2 विदुरप्पा (दुग्ण) 1/2 से (त) 1/1 मवि पाहि: । (सा) भवि 3/1 मम मन्चमुह [(मच्चु)- (मह) 211 तु (प्र) : पादपति पत्ते (पत्त) ना || अनि पन्यारए तावरण (पच्छारण ताव) 311 दयाविहगो (दया-(विहण) ।।। वि]
146. तुट्ठो (न) भूक 111 अनि य (म) - बिल्कुल सैणिपो (सेरिणम)
1|| राया (राम) 1 इणमुदाह [(इग) + (उदाहु)] इस (इम) 1/2 मवि उदाहु (उदाहु) भू 3/1 सक भनि कपंनती
किय) : (पंजली]] [ (कय) भूक प्रनि-(अंजलि 2/2] प्रणाहतं
(प्रणाहत्त) ।/। जहाभूयं (म) = यथार्थतः सुठ्ठ (प)-प्रच्छी . नरह से मे (प्रम्ह) 311 म उवदंसियं । उवदंम) मूक 11 .
147. तुझ2 (तुम्ह) 612 म मुलवं (मु-लद) मूह 111 अनि ख
(अ) - मचमुन मरण स्सजम्मं [(मण स्म)-(जम्म) 111] लाभा
भाभ) । सुलढा (सु-लद) मूक 112 मनि य (म) तथा तुमे (तुम्ड) 3/1 म महेसी (महेसि) 8/1 तुम्ने (तुम्हे) 112 म सणाहा (मणाह) 112 य (मा). =ोर सबन्धवा (म-बन्धव) 1/2 वि जं (प)---चूकि मे (तुम्ह) ठिया (ठिय) मूक 112 अनि मरगे (मरग) 7/1 जिए तमाणं [(मिण)-(उत्तम) 3612
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1. छन्द को माता की पूति हेतु '' को '६ किया गया है। 2. कभी कभी तृतीया के स्थान पर पप्ठी को प्रयोग पाया जाता है । (हमा.
प्राकृत-कारण, 3-134) 3. कभी कमी पष्ठी का प्रयोग मप्तमो के स्पान पर पाया जाता है। (हेमा
प्राकुन-कारण, 3-134)।
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उत्तराध्ययन

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