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143. जे (म) 1/1 मवि लक्खरणं (लक्खरण) 2/1 सुविणं (विरण)
211 पजमारणे (पउंज) वकृ. 1/1 निमित्त-कोहलसंपगाढे [(निमित्त-(कोउहल) - (संपगाढ) 1/1 वि कुहेरविरजासबदार जोबो (कुहेड)+ विज्जा) + (मासव) + (दार) + (जीवी)] [(कुहेड-(विज्जा)-(प्रासव-(दार)- (जीवि) 11 वि] न (म)= नहीं गई । (गच्छ) व 3/1 सक सरणं (मरण) 2|| तम्मि (त) 711 म काले (काल) 711
144 तमं । (नम) तमेणेव [(तमेण) + (एव)] तमेण (तम) 3/1 एव (अ)= ही उ (4)= मोर जे (ज) 1|| सवि प्रसोले (मसील)
वि सपा (अ) =सदा दुही (दुहि) I|| वि विपरियासुवेई [(विप्परियास)+ (वेई) विपरियास (विप्परियास) मूल शब्द 2|| उवई ३ (वे) व 3/1 सक संघावई । (म-धाव) व 311 सक नरग-तिरिक्खजोरिण [(नगर)-(तिरिक्ख)-(जोणि) 2/1 मोरणं (मोए) 211 विराहेत (विगह) म प्रसाहवे। [(प्रसाह)(स्व) 111 वि]
1. बन्द की मात्रा के लिए ' को किया गया है। 2. कभी कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया
जाता है (हेम-प्राकृत-भ्याकरण : 3-137)। 3. पूरी या माषी गाया के अन्त में माने बालो '' का क्रियामों में बहया '' हो
जाता है (पिलम, प्राकृत भाषामों का व्याकरण, पृष्ठ, 138) । 4. सन्द की मात्रा को पूर्ति हेतु 'द' को किया गया है। 5. समास के अन्त के रूप-रूव का अर्थ होता है 'बना हुआ' (माप्टे
संस्कृत-हिन्दी कोश)।
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