Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 128
________________ 135. प्रप्पा ( मप्प ) 1/1 कता (कसु) 1/1 वि विकता ( विकत ) 1 / 1 विय (प्र) = भी दुक्खाण ( दुक्ख ) 6/2 य (प्र) श्र सुहारण ( सुह) 6/2 य (प्र) तथा मितममितं [ ( मित्त) : (प्रमितं )] मितं (मित) 1 / 1 प्रमितं ( प्रमिस ) 1/1 ( अ ) मौर तुम्पट्ठियप्पाट्ठियो [ ( दुष्पट्टिय) - (मुपट्टिद्म ) 11 वि ) ] 136. इमा (इमा ) 1 / 1 मवि ह (भ) =भी अन्ना (अन्न) 1 / 1 विवि (घ) = ही भरगाहया ( मरणाहया ) 1/1 निवा ( निवा) 8:1 समेगवितो [ ( तं) + (एम) + चित्तो) तं (त) 211 [ (एम) - (चित्त) ] 1 / 1 निहुम्रो ( निहुम) 1 / 1 वि सुरोह (सुग) विधि 2 / 1 सक मे (प्रम्ह ) 3 / 1 स नियंठधम्मं (नियंठधम्म, 2/1 समिया (लभ) संकृ वी (प) =भी जहा (प्र) = चू ंकि सीमंति ( सीय) व 3 / 2 एक एगे (एग ) 1/2 सवि बहुकायरा [ ( बहु ) - (फायर) 1/2 वि] नरा (नर) 1/2 C 137. जे (ज) 1/1 सवि - पहम्बइत्ताणं ( पव्वम) संकृ महम्वयाई ( महल्वय) 2/2 सम्मं ( प ) = उचितरूप से नो ( प्र ) = नही कासमती 1 (फासमती) व 3 / 1 सक अनि पमाया : ( पमाय) 5/1 निगहया [ (प्रनिग्गह) + (प्रप्पा ) ] [ ( मनिग्गह - ( मप्प ) 1 / 1] य (भ) = मोर रसेसु (रस) 7/2 गिद्धे (गिद्ध ) भूकृ 1 / 1 अनि न (म) नहीं मूलग्रो (मूल) पंचमी मर्थक 'प्रो' प्रत्यय विह (छिद) व 3/1 सक बंधणं (बंधरण) 2/1 से (त) 1 / 1 सवि 1. अब की मात्रा की पूर्ति हेतु दोघं किया गया है। 2. किसी कार्य का कारण व्यक्त करने के लिए संज्ञा को तृतीया या पंचमी में रक्खा जाता है। 104 ] उत्तराध्ययन

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