Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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104. महो (म)-माश्चर्य वाणो (वण्ण) 1|| स्वं (रूव) 11
प्रज्जस्स (पज्ज) 6/1 सोमया (सोमया) 1/1 खंती (खंति) 11
मुत्तो (मुत्ति) 1/1 भोगे (भोग) 7/1 प्रसंगया (प्रसंगमा) 1/1 105. तस्स (त) 6/1 स पाए (पान) 7/13 (म)=ोर वंदित्ता
(वंद) संकृ कामरण (काऊप) संक पनि य (म) तथा पयाहिणं (पयाहिणा) 2/1 नाइदूरमणासन्ने [(नाइदूरं) + (पणासन्ने)] नाइदूरं (भ) =न भत्यधिक दूरी पर प्रणासन्ने (मरणासन्न) 7/1
पंजली (पंजलि) 1/1 वि परिपुच्छई' (पडिपुच्छ) व 3/! सक. 106. तो (तरुण) 1/1 सि (प्रस) व 2/1 प्रक प्रज्जो (प्रज्ज)
8/1] पश्याप्रो (पध्वइम) भूक 1/1 प्रनि भोगकाल म्मि [(भोग) -(काल) 7/1] संजया (संजय) 8/1 उटिनो (उद्धिष) भूक 1/1 पनि सामाणे (सामण्ण) 711 एपम? [(एय) 4 (8)] एवं (एय) 2/1 सवि अट्ठ (मट्ट) 2/1 सुरोमु (सुण) व II सक ता (म)-तो
107. प्रणाहो (प्रणाह) 1/1 वि मि (अस) R 1/! अक महारायं
(माराय) 8/1 नाहो (नाह) 11 वि मज्झ (अम्ह) 6/1 स न (भ)नहीं विज्जई (विज्ज) व 3/1 प्रक प्रण कंपगं (पण कंपग) I/I वि मुहि (मुहि) 2/1 वा (प्र)=या वि (प्र)
=भी कंचो (क) 2|| नाभिसमेमऽहं (न) + (अभिसमेम) + (मह)] न (प)==नहीं अभिसमेम (मभिसमे) व 112 सक महं (प्रम्ह) 1/1स
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1. पूरी गापा के अन्त में पाने वालो का क्रियामों में बहुपा हो जाता है
(पिशन : प्रारत भाषामो का म्याकरण. पृष्ठं 138) 2. किम् +चित-कचित्{2/1)-कवि-कंची (माता के लिए दोपं)
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उत्तराध्ययन

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