Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 110
________________ (विसोहि) 2/1] निरइयारे (निरइयार) 1/1 यावि (अ) भवा (भव) 3/1 प्रक सम्म (म) =शुदिपूर्वक च (म) = मोर एं (म) वाक्यालंकार पायन्छितं (पायच्छित्तं)2/1 परिवज्जमारणे (परिवज्ज) बक़ 1/! मग्गं (मरग)2/1 मग्गफलं[(मग्ग)-(फल) 211] च (म) = भोर विसोहेइ (विसोह) व 3/1 सक मायारं (मायार) 2/10 (म)= और प्रायारफलं [(आयार)-(फल) 2/1] पाराहेड (प्राराह) व 3/1 सक 77. समावणयाए (खमावणया) 3/10 (म) = वाक्यालंकार भंते (मंत) 8/1 वि नोवे (जीव) 1/1 कि (कि) 2/1 वि जण्यइ (जण्यइ) प्रेरक व 3/1 सक अनि पल्हायरणभावं [(पल्हायण) वि-(भाव) 211] पल्हापरणभावमुवगए [(पल्हायण) - (भाव) + (उवगए)] [(पल्हायण)-(भाव) 2/1] उवगए (उवगप्र) भूह 111 अनि य (म) और सम्वपारण-भूप-जीव-सत्तेसु [(सव्व)-(पारण)-(भूय)-(जीव)-(सत्त) 712] मेत्तीभावं [(मेत्ती)-(भाव) 2/1] उप्पाएइ (उप्पाम) व 3/1 सक मेतीभावमुवगए [(मेत्ती)+ (भाव) +उवगए)] [मेत्ती)-(भाव) 211] उवगए (उवगय) भूक 11 मनि यादि (म)=और जीवे (जीव) 1/1 भावविसोहि [(भाव)--(विसोहि) 2/1] काऊण (का) संकृ निन्भए (निन्भम) 1/1 वि भवइ (भव) व 3/1 प्रक 78. धम्मकहाए [(धम्म)-(कहा) 3/1] Q (म)=वाक्यालंकार भंते (मंत) 8/1 वि जीवे (जीव) 1/1 किं (कि) 2/1 वि जणयह (जणयइ) प्रेरक व 3/1 सक अनि पवयणं (पवयण) 2/1 पभावेद (पभाव) व 3/1 सक पवयणपभावए [(पवयण) 1. कभी-कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमो विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम-प्राक्त-व्याकरण : 3-135) 86 ] उत्तराध्ययन

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