Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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- (लोल) 1/1 वि] समुबेइ (समुबे) व 3 / 1 सक म ( मच्चु ) 2 / 1
95. भावे 1 (भाव) 7/1 बिरतो ( विरस ) 1 / 1 वि मणुभो ( मणुम ) 1/1 fæaint (fareita) 1/1 fa ggu (ga) 3/1 afa लोधपरंपरेण [ ( दुक्स) + (मोघ) + (परंपरेण ) ] [ ( दुक्ख ) - (घ) - ( परंपर) 3 / 1] न ( प्र ) = नहीं लिप्पई (लिप्पइ) व कर्म 3/1 तक प्रति भवमज्भे [ ( भव) - (मज्झ) 7/1] वि (प्र) = भी संतो (संत) 1 / 1 वि जलेग (जल) 3 / 1 बा (प्र) = जैसे कि रिलीपलासं [ ( पुक्खरिणी) - ( पलास ) 1 / 1 ]
1
(हउ) 1/1
96. एविदित्था [ (एव) + (इंदिय) + (प्रत्या ) ] एव ( प्र ) = वास्तव [ (इन्दिय) - ( प ) 1/2] य (अ) श्रौर मणस्स (मण ) 6 / 1 अत्था ( प्रत्य ) 1/2 दुक्खस्स ( दुक्ख ) 6 / 1 हे म यस ( मरण. य) 4 / 1 रागिणो ( रागि) 4 / 1 सवि चैव (प्र) भी पोवं (थोव) 2 / 1 वि पि (प्र) = कभी तुमखं ( दुक्ख ) 2 / 1 न ( प्र ) = नहीं बीयरागस्स ( वीयराग ) 4 / 1 करेंति (कर) व 3 / 2 सक किंचि (प्र) = कुछ.
ते (त) 1/2
:
(प्र)
भी कयाइ
=
97. न ( प्र ) = नहीं कामभोगा [ (काम) - (भोग) 8 5/1] समयं (समय) 2/1 उति ( उवे) व 3 / 2 सक यावि (प्र) = मोर भोगा (भोग* ) 5 / 1 विगई ( विगs) 2 / 1 जे (ज) 1 / 1 सवि तप्पदोसी [ ( त ) -
1. कभी कभी पंचमी विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण: 3-136)
2. धन्य को मात्रा की पूर्ति हेतु 'इ' को 'ई' किया गया है।
3. किसी कार्य का कारण व्यक्त करने के लिए संज्ञा को तृतीया या पंचमी में - सबा जाता है।
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