Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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भुजमारणा (मुज्जमारण) व कर्म 1/2 पनि ते (त) 1/2 सवि
दएं (खुद्दम)। स्वार्षिक 'म' 711 वि जीविए। (जीविम) 7/1 पण्यमारपा (पच्चमारण) व कर्म 1/2 मनि एपोवमा [(एम) + (उवमा)] [(एम) - (उवमा) 111] कामगुणा
[(फाम)-(गुण) 1/2] विवागे (वियाग) 711 93. धबलस्स' (चवस्तु) 6/1 स्वं (स्व) 1/1 गहगं (गहण) 111
पयंति: (वय) व 3/2 सक तं (अ) वाक्य की शोभा रागहे [(राग)-(हेउ) 2/1] तु (प) = पादपूरक मण न्नमाहु [(मन्नं) + (माहु)] मण न्नं (मणुन्न) 2/1 वि पाहु (पाह)] भू 312 सक पनि तं (प) वाक्य को शोभा दोसहेलं [(दोस)(हेउ) 211] प्रमरण न्नमाहु [(पमणुन्न) । (माह)] प्रमए न्नं (प्रमणन्न) 2/1 माह' (पाह)भू 312 सक पनि समो(सम)1/1 यि उ (म)=किन्तु जो (न) 1/1 सवि तेसु (त) 712 स स (त)
1/1 सवि वीयरागो (वीयराग) 1/1 दि 94. क्वेसु (ब) 712 जो (ज) 1/1 सवि गेहिमुवेइ [(गेहि)+
(उवेइ)] गेहि (गेहि) 2/1 ग्वेद (उवे) व 3/1 सक तिव्वं (तिव्वं) 2/1 वि अकालियं (मकालिय) 2/1 वि पावह (पाय) व 3/1 सक से (त) 1/1 सवि विणासं (विणास) 2/1 रागाउरे [(राग)+ (माउरे)] [(राग)-(प्राउर) 1/1 वि] जह (म)
-जैसे वा (म) तथा पयंगे (पयंग) 1/1मलोगलोले [(मलोग) 1. कभी कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी रिमक्ति का प्रयोग पाया बावा
है। (हेम प्राकृत व्याकरण :3-133) 2. कभी कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर पष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया बाता
। (हेम प्राकृत माकरण : 3-135) 3, यहाँ बवंमान काम का प्रयोग भूतकाम पर्व में हुमा है। 4. पिसमः प्राकृत भाषापों का व्याकरण, पृष, 755 92 ]
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