________________
23. वितण (वित) 311 ताणे (ताण) 1 (म)=नहीं समे
(लभ) व 3/1 सक पमते (पमत्त) 11 वि इमम्मि (इम) 7/1 सवि लोए (लोम) 7/1 भतुवा (म)मपवा पररथा' (म)= परलोक में रोवप्पपळे [(दीव-(प्पण?) 711 वि] - (म)= जैसे प्रगतमोहे [(प्रणंत)-(मोह) 711] नेयाउयं (नेयाय) 2/1 वि दमदमेव [(ट्ठ) (प्रदु४) + (एव)] दठ्ठ (दछु) संकृ पनि पद(पदट्ठ) सक मनि एव (प्र)=ही.
24. सुत्तेपुर (सुत्त) 712 वि यावी (म) तथा पग्नुिटनोवो
[(पटिनुद) भूक भनि--(जीवि) 111 वि ] न (म)=नहीं वोससे (वीसस) विधि 3/1 सक परिय' (वडिय) भूत शन्द 1/1 मासुपन्ने (मासुपन्न) 11 वि घोरा (धोर) 1/2 वि मुहत्ता (मुहत्त) 1/2 प्रबतं (प्रबल) 1 वि सरीरं (सरीर) 1|| भारपालो [(भा)-(पनिस) 1/1] 4 (प्र)की तरह परम्पमतो [(चर) + (मपमत्तो)] चर (पर) विधि 2/1 अक मप्पमतो (मप्पमत्त) 111 वि.
25. स (त) 11 सवि पुग्धमेवं [(पुत्र) (एवं)] पुग्वं (4)=प्रारंभ
में एवं (प)=ही न (3नहीं समेन्ज (लभ) भवि 3/1 सक
-
-
1. यहाँ परत्व' का 'परस्पा' है, '' का 'पा' विकल्प से हुमा है, से 'पुरा
'पुण होता है। 2. कभी कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता
है (हेम-प्राकृत-व्याकरण: 3-135) । 3. 'विश्वास' मषं को बनाने वाले शब्दों के योग में प्रायः स पर विश्वास
किया जाता है उसमें) सप्तमी शिभक्ति का प्रयोग होता है। 4. कर्माकारक के स्थान में केवन मून संज्ञा सन्द भी काम में लाया जा सकता है
(पिचन :प्राकृत भाषामों का व्याकरण, पृष्ठ 518)।
चयनिका
69