Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 95
________________ 28. तो (प) =बाद में से (न) 1|| सवि मरतम्मि [(मरण) । (अंम्मि )] [(भरण)-(अंत) 711] बाले (बाल) 1/1 वि संतसई। (सं-तम) व 3/1 प्रक भया (भय) 5/1 अकाममरणं [(काम) वि-(मरण)- 2/1] मरइ (मर) व 3/1 पक धुत्ते • (धुत्त) : वि वा (प्र). जैसे कि कलिणा' (कलि) 3/1 • बिए (जिम) भूकृ 111 अनि. 29. नावंतविन्जापुरिसा [ (जावन) + (मविज्जा) + (पुरिसा) ] [(जावंत) वि-(अविज्ज) 112 वि पुरिमा (पुगिस) 1/2 सन्वे (सन्व) 112 वि ते (त) 1/2 सवि दुरखसंभवा [(दुक्ख)-(संभव) 1/2] तुप्पति (नुप्पनि) व कर्म:3/1 मक भनि बहुसो (प्र) = बार-बार मूढा (मूढ) 1/2 वि संसार मि (मसार) 711 अगंतए (भरणन) 711 स्वायिक 'प्र' 30. अन्नत्यं (प्रज्मन्य) 211 सन्वानो (अ)- पूर्णतः सन्वं (सन्व) 2/1 वि दिस्स (दिस्स) संकृ पनि पाणे (पाण) 212 पियायए [(पिय) + (माया)] प्रिय' (अ)=प्रिय रूप में आयए (प्रायम) विधि, 3/1 सक' न (अ)-नही हगे (हण) विधि 3/1 सक पारिणरणों (पारिण) 6/I पाणे (पाण) 2/2 भय-वेरामो [(भय) --(वर) 5/1] उवरए (उवरण) 111 वि 1. छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'इ' को किया गया है। 2. कभी कभी सप्तमी विक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है हिम-प्राव-व्याकरण :3-137) । 3. कभी कमी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विक्ति का प्रयोग पाया जाता है (हेम-प्राकृत-व्याकरण : 3-137) , 4 यहाँ पियरे मनुस्वार को लोप हुमा है (हेम-प्राकृत-व्याकरण :1-29) चयनिका [ 71

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