________________
- 146. राजा श्रेणिक बिल्कुल संतुष्ट हुआ (मौर) (प्रणाम के लिए) हाथों को (ऊँचा) किए हुए यह (वाक्य) बोला, " (भापके द्वारा). समझाई हुई अनायता मेरे द्वारा अच्छी तरह से (समझ ली गई है) ।
147. हे महर्षि ! सचसुच श्रापके द्वारा मनुष्य जन्म ठीक तरह से लिया गया है तथा आपके द्वारा (उसके ) लाभ ठीक तरह से प्राप्त किए गए हैं। श्राप सनाथ ( हैं ) और बन्धुनों सहित (हैं), चूँकि श्राप जितेन्द्रियों द्वारा ( प्रतिपादित) श्रेष्ठ मार्ग पर स्थित ( हैं ) ।
148. हे संयत ! प्राप अनाथों के नाथ हो, (श्राप) सब प्राणियों के (नाथ) (हो) । हे पूज्य ! मैं ( प्राप से) क्षमा चाहता हूँ (और) प्रापके द्वारा शिक्षण प्रदान किए जाने की इच्छा करता हूँ ।
•
149. तो प्रश्न करके मेरे द्वारा जो श्रापके ध्यान में बाधा दी गई. श्रीर भोगों मे (रमने के लिए) मेरे द्वारा (जो) (श्रापको ) निमन्त्रण दिया गया (है), उस सबको (श्राप) क्षमा करे ।
150. इस प्रकार वह राजप्रमुख परम भक्ति के साथ साधुप्रमुख की स्तुति करके रानियों सहित तथा अनुयायी वर्ग-सहित शुद्ध मन से अध्यात्म में अनुराग-युक्त हुआ ।
चयनिका
[ 59
•