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iv. (अध्यात्म के) श्रवण श्रर (उसमें) श्रद्धा को प्राप्त करके भी दुर्लभ ( है ) । तथा यद्यपि (संयम मनुष्य ) (होते हैं) (तथापि ) मनुष्य - समूह उस ( सयम ) को
फिर (संयम में) सामथ्यं को) चाहते हुए ( बहुत ( सामर्थ्य के प्रभाव में ) ( वह) स्वीकार नहीं कर पाता है ।
धर्म
17. ( जिसने ) मनुष्यत्व की प्राप्त किया ( है ) (तथा) जो (अध्यात्म) को सुनकर ( उसमें ) श्रद्धा करता है, ( वह) सावध (पाप - युक्त) प्रवृत्ति से रहित तपस्वी ( संयम में) सामथ्यं प्राप्त करके (कर्म) - रज को नष्ट कर देता है ।
18. सीधे मनुष्य की शुद्धि ( होती है ) ।
शुद्ध (व्यक्ति) में धर्मं ( श्राध्यात्म) ठहता है । (प्रोर) (वह) घी से भिगोई गई अग्नि की तरह परम दिव्यता प्राप्त करता है ।
19. ( मिला हुम्रा यह) जीवन अपरिमार्जित (पाशविक वृत्तियों सहित ) ( है ) | ( अतः जीवन के परिमार्जन के लिए) प्रमाद मत करो, क्योंकि बुढ़ापे के समीप में लाए हुए (व्यक्ति) का (कोई ) सहारा नहीं ( है ) । प्रमादी जन, हिंसक (और) नियम - रहित (व्यक्ति) किसका (सहारा) लेंगे ? इस प्रकार तुम समझो ।
20. जो मनुष्य कुबुद्धि को ग्रहण करके पाप कर्मों द्वारा धन को स्वीकार करते हैं, (तुम) ( इस प्रकार ) प्रवर्तित मनुष्यों को देखों, वे (धन को छोड़कर वैर से बंधे हुए नरक को प्राप्त करते हैं ।
चयनिका
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