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51. जैसे स्वयं भूरमण ( नामक ) समुद्र तरह-तरह के रत्नों से
भरा हुआ (होता है), (और) (उसका ) जल ( भी ) अक्षय (होता है), इसी प्रकार विद्वान (तरह तरह के ज्ञान - रत्नों से भरा हुमा) होता है (तथा) ( उसका ज्ञान भी अक्षय होता है) ।
52. हे राजा ! (जो ) इस अनित्य जीवन में अतिशयरूप से शुभ कार्यों को न करता हुआ ( जीता है), वह मृत्यु के मुख में ले जाए जाने पर (इसी जीवन में शोक करता है (और) (यहाँ किमी भो) शुभ कार्य को न करके परलोक में ( भी ) (शोक करता है) ।
53. जैसे यहाँ सिंह हिरण को पकड़ कर ले जाता है,
(वैसे ही) मृत्यु अन्तिम समय में मनुष्य को निस्संदेह ले जाती है । उसके माता और पिता और भाई उस मृत्यु के समय में भागीदार नहीं होते हैं ।
54. उसके (व्यक्ति के) दुःख को सगोत्री (जन) नहीं बाँटते हैं, न मित्र-वर्ग, सुत (और) न बंघु (बांटते हैं) । ( वह) स्वयं अकेला (ही) दुःख का अनुभव करता है । (ठीक ही है) कर्म कर्ता का ही अनुसरण करता है ।
55. व्यक्ति द्विपद धीर चतुष्पद को, खेत, घर, धन-धान्य और सभी को छोड़कर कर्मों सहित प्रकेला शक्ति-हीन (बना हुमा) अनिष्टकर अथवा इष्टकर दूसरे जन्म को प्रस्थान करता है ।
चयनिका
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