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जैसे जोते जाने योग्य उज्जड़ बैल (वाहन को) (तोड़ देते हैं,) वैसे ही धर्मरूपी यान में जोते हुए प्रात्म-संयम में दुर्बल तथा प्रविनीत शिष्य भी निस्संदेह (धर्म-यान को) छिन्न-भिन्न
कर देते हैं। 75. हे पूज्य! सामायिक से जीव (मनुष्य) क्या उत्पन्न करता है?
सामायिक से (जीव) अशुभ प्रवृत्ति से निवृत्ति उत्पन्न
करता है। 76. हे पूज्य! प्रायश्चित करने से जीव (मनुष्य) क्या उत्पन्न
करता है ? प्रायश्चित करने से जीव अशुभ कर्मों की शुद्धि को उत्पन्न करता है और (वह) (माचरण में) निर्दोष रहता है। और शुद्धिपूर्वक प्रायश्चित को अंगोकार करता हुप्रा (वह) साधन और माघन के फल को निर्मल बनाता
है तथा चरित्र और चरित्र के फल को आराधना करता है। 77. हे पूज्य! खमाने (क्षमा मांगने) मे मनुष्य क्या उत्पन्न
करता है ? खमाने से (वह) आनन्ददायक भाव उत्पन्न करता है। और आनन्ददायक भाव को पहुँचा हुमा (मनुष्य) सब प्राणियों, जन्तुओं, जीवों (और) प्राणवानों के प्रति मंत्री-भाव उत्पन्न करता है । और मैत्री-भाव को पहुंचा हुआ मनुष्य भावों को शुद्धि करके निर्भय हो जाता है। हे पूज्य! धर्म-कथा से मनुष्य क्या उत्पन्न करता है ? धर्म-कथा से (वह) प्रवचन (अध्यात्म) को गौरवित (प्रभावयुक्त) करता है, (तथा) प्रवचन (अध्यात्म) को प्रभाव-युक्त करने से मनुष्य निःस्वार्थ कल्याण के लिए कर्मों का उपार्जन करता है।
चयनिका
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