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84. यदि बड़े तालाब में जल का आना पूर्णरूप से रोक दिया ।
गया (है), (तो) (जल)- खींचने के द्वारा (तथा) (सूर्य की) गर्मी के द्वारा (जल का) सूखना धीरे-धीरे हो जाता है।
85. इस प्रकार ही संयत (मनुष्य) में अशुभ कर्मों का प्रागमन
नहीं होने के कारण करोड़ों भवों के संचित कर्म तप के द्वारा नष्ट कर दिए जाते हैं।
86. सम्पूर्ण ज्ञान के प्रकटीकरण से, प्रज्ञान और मूर्छा के
वहिष्करण से (तथा) राग-द्वेष के विनाश से (मनुष्य) अचल सुख (तथा) स्वतन्त्रता को प्राप्त करता है।
87. गुरु और विद्वान् की सेवा, अज्ञानी मनुष्य का दूर से ही
त्याग, स्वाध्याय, एकान्त में (भीड़ से दूर) वसना, सूत्र (आध्यात्मिक वचन) (और) (उसके) अर्थ का चिन्तन तथा धर्य-यह उसका (आध्यात्मिकता का) पथ (है) ।
88. (सभी अहंत्) कहते हैं (कि) कर्म का बीज (कारण) राग
और द्वेष (है)। और (वे ही संक्षेप में पुन: कहते हैं कि) कर्म मूर्छा से उत्पन्न (होता है)। (पुनः) (वे) कहते हैं (कि) कर्म ही जन्म-मरण का मूल (है) (तथा) जन्म-मरण ही दुःख (है)।
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