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98. शब्द आदि सब ही इन्द्रिय-विषय ( हैं ) और (उनके) उतने ( ही ) प्रकार ( हैं ) | ( किन्तु ) निर्लिप्त होते हुए उस (मनुष्य) के लिए (वे विषय) (मन में) मनोज्ञता ( आकर्षण ) या प्रमोनशता ( विकर्षण) उत्पन्न नहीं करते हैं ।
99. सिद्धों को और साधुओं को भावपूर्वक नमस्कार करके (मैं) ( जीवन के ) प्रयोजन (और) ( उसके अनुरूप ) आचरण के वास्तविक ज्ञान का (जो अनुभव) मेरे द्वारा (किया गया है) ( उसके ) शिक्षण को ( प्रदान करने के लिए उद्यत हूँ ) | (तुम सब ) ( उसको ) (ध्यानपूर्वक) सुनो।
100. मगध के शासक, राजा श्रेणिक (जो ) सम्पन्न ( कहे जाते थे) हवाखोरी को निकले (और) ( वे) मण्डिकुक्षो ( नामके) बगीचे में ( गए) 1
101. ( वह ) बगीचा तरह-तरह के वृक्षों और बेलों से भरा हुआ (था ), तरह-तरह के पक्षियों द्वारा उपभोग किया हुआ (था), तरह-तरह के फूलों से पूर्णत: ढका हुआ (था) और इन्द्र के बगीचे के समान ( था) ।
102. वहाँ उन्होंने (राजा ने) आत्म-नियन्त्रित, सौन्दर्य - युक्त, पूरी तरह से ध्यान में लीन, पेड़ के पास बैठे हुए तथा (सांसारिक सुखों के लिए उपयुक्त (उम्रवाले) साघु को देखा ।