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67. (जो व्यक्ति) भोगों को भोग कर और (उन्हें छोड़ कर हलके हुए विहार करनेवाले ( है ), ( वे) प्रसन्न होते हुए गमन करते हैं, जैसे कि पक्षी इच्छा क्रम (स्वतन्त्रता) के कारण (गमन करते हैं) ।
68. (अनासक्त व्यक्ति) लाभ-हानि, सुख-दुःख तथा जीवन मरण में, निन्दा - प्रशंसा तथा मान-अपमान में तटस्थ (होता है) ।
69. जरा-मरण के प्रवाह के द्वारा बहा कर लिए जाते हुए प्राणियों के लिए धर्म (अध्यात्म) टापू (आश्रय गृह ) ( है ) सहारा ( है ) रक्षा-स्थल ( है ) तथा उत्तम शरण (है) ।
70. चूंकि शरीर को नाव कहा, (इसलिए ) जीव नाविक कहा जाता है । संसार समुद्र कहा गया ( है ), जिसको श्रेष्ठ की खोज करने वाले (मनुष्य) पार कर जाते हैं ।
71 भोगों के कारण कर्म-बन्ध होता है । अविलासी (कर्मों के · द्वारा) मलिन नहीं किया जाता है। विलासी (कर्मों के कारण) संसार में भटकता है। अविलासी ( मलिनता से) छुटकारा पा जाता है ।
72. गीला और सूखा, दो मिट्टीमय गोले फेंके गए। दोनों ही दीवार पर पड़े, (किन्तु ) जो गीला ( था), वह यहाँ पर ( दिवार पर चिपका ।
73. इसी प्रकार जो मनुष्य दुर्बुद्धि ( हैं ), ( और विषयों से प्रत्यन्त लालायित (होते हैं), (वे) (विषयों से) चिपट जाते हैं, किन्तु जो विरक्त (हैं), (वे) (विषयों से) नहीं चिपकते हैं, जैसे वह सूखा गोला ( दिवार से नहीं चिपकता है) ।
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