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45. जो (व्यक्ति) मूख, अभिमानी, इन्द्रिय-संयम-रहित तथा
लोभी होता है, (जो) बारंबार अप शब्द बोलता है, (जो)
अविनीत (है), (वह) अ-विद्वान (होता है) । 46. अच्छा तो, जिन (इन) पांच कारणों से शिक्षा प्राप्त नहीं
की जाती है : अहंकार से, क्रोध से, प्रमाद से, रोग से तथा आलस्य से।
47. और इस प्रकार माठ कारणों (बातों) से (व्यक्ति) ज्ञान
का अभ्यासी कहा जाता है : 1) (जो) हंसी करनेवाला नहीं है 2) (जो) इन्द्रियों को वंश में करनेवाला (है) 3)
(जो) (किसो को) दुर्वलता को नहीं कहता है। 48. (जो) चरित्र-हीन नहीं (है), (जो) व्यभिचारी नहीं (है),
(जो) प्रति रस-लोलुप नहीं (है), (जो) अक्रोधी (है), (तथा) (नो) सत्य में संलग्न (है)-इस विवरणवाला(वह व्यक्ति)ज्ञान का अभ्यासी कहा जाता है।
49. जैसे अंधकार को समाप्त करनेवाला उदित होता हुआ सूर्य
मानो तेजस्विता से चमकता हुआ (दिखाई देता है), इसी प्रकार विद्वान (ज्ञान की तेजस्विता से चमकता हुमा)
होता है। 50. जंस सामानित (समूह से संबंध रखनेवालों का) का भण्डार
सुरक्षित (और) तरह-तरह के अनाजों से भरा हुमा (होता है), इसी प्रकार विद्वान (तरह-तरह के ज्ञान से भरा हुमा) होता है।
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