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40. जैसे कुशघास के पत्ते के तेज किनारे पर लटकता हुआ
मोस-बिन्दु थोड़ी (देर तक) ठहरता है, इसी प्रकार मनुष्य का जीवन (थोड़ी देर तक रहता है) । (प्रतः) हे गौतम ! अवसर को (समझ) और (तू) प्रमाद मत कर ।
41. वास्तव में सब प्राणियों के लिए मनुष्य-संबंधी जन्म बहुत
समय पश्चात् भी दुर्लभ (है), और कर्म के परिणाम बलवान् (होते हैं)। (मतः) हे गौतम ! अवसर को (समझ) (और) तू प्रमाद मत कर।
42. तेरा शरीर क्षीण हो रहा है। तेरे बाल सफेद हो रहे हैं।
और (तेरा) प्रत्येक बल क्षीण किया जाता है (अतः) हे गौतम ! अवसर को (समझ) (और) (तू) प्रमाद मत कर ।
43.
स्वयं की आसक्ति को (तू) छोड़, जैसे कि शरत्कालीन लाल कमल पानी को (छोड़ देता है), (और) (इस तरह से) वह (लाल कमल) समस्त आर्द्रता (पोलेपन) से. रहित (होता है) । (प्रतः) हे गौतम ! अवसर को (समझ), (और) (तू) प्रमाद मत कर।
44. (तू चाहे) ग्राम अथवा नगर में स्थित (हो), (किन्तु तू
वहाँ) संयत (अवस्था में), जागृत (दशा में) (तथा) शान्त (स्थिति में) रह। इसके अतिरिक्त (तू) शांति-पथ को पुष्ट कर। (अतः) हे गौतम ! अवसर को (समझ), (और) प्रमाद मत कर।
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