________________
25. (जो) प्रारभ में ही (अप्रमत्त) नहीं (होता है), वह वाद
में (अप्रमत्त अवस्था को) प्राप्त कर लेगा, यह विचार शाश्वतवादियों (अमरतावादियों) का (है)। (एसा व्यक्ति) प्रायु के शिथिल होने पर, मृत्यु के समीप में लाया हुआ होने पर (तथा) शरीर के वियोजन के (अवसर) पर खेद करता है।
26. जैसे (कोई) गाड़ीवान जानता हुआ (भी) उपयुक्त मुख्य
सड़क को छोड़कर ऊबड़-खाबड़ मार्ग पर (दि) उतग (हुमा) (), (तो) (वह) धुरी के खण्डित होने पर शाक करता है:
27. इसी तरह धर्म को छोडकर, अधर्म को अगीकार करके, मृत्यु
के मुख में गया हुया मूढ़ (मनुष्य) शोक करता है, जैसे धुरी के खण्डित होने पर (गाडीवान गोक करता है)
28. जैसे कि एक पास में (ही) मात दिया हुमा जुपारी भय में
अत्यन्त कांपता है, वैसे ही) वह मूढ़ (मनुष्य) वाद में मरण की निकटता में (भय से अत्यन्त कांपता है) और (वह) प्रकाम (मूछित) मरण (की अवस्था) में (ही) मरता
29. जितने (भी) अज्ञानी मनुष्य (है), व सभी दुःखां के मान
(है) । (और) (वे) मूढ़ बार-बार अन्नत संसार में दुका किए जाते है।
चयनिका