Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 11
________________ साधन है, कर्म ईधन है, और संयम शांति मन्त्र है। इन साधनों से यज्ञ करना हो प्रशस्त यज्ञ है । एक युवा मुनि ने महा वैभवशाली राजा श्रेणिक को भी यह अनुभव करा दिया कि वह अनाथ है। राजा ने तरुण मुनि से पूछा "इस भोग भोगने की वय में प्राप मुनि बने हैं तो क्या दुःख है, वतायें।" तब मुनि ने कहा कि वे अनार्थ हैं ।' राजा ने कहा "मैं सब अनाथों का नाथ हूँ", तव मुनि ने कहा कि 'पाप स्वयं 'अनाथ" हैं।' राजा अवाक रह गया, तब अनाथ की परिभाषा से राजा को अवगत कराया कि जब पीड़ा, बुढापा और काल पाता है तो कोई किसी की सहायता नहीं कर सकता। केशी-गौतम संवाद से भगवान पार्श्वनाथ के समय के साधुओं और भगवान महावीर के साधुओं के बीच वेप व समाचारी के भेद से जो शंकाएं थी उनको दूर किया और धर्म की समय-समय पर प्रज्ञा मे समीक्षा करना यथेष्ट बताया। देश, काल और भाव से व्यवहार में परिवर्तन पाता है, परन्तु प्रज्ञा से समीक्षा कर परिवर्तन होता है तो मुलभूत सिद्धान्त अपरिवर्तित रहते हुए भी व्यवहार में यथेष्ट परिवर्तन किया जा सकता है। वैराग्य, धन व भोगों की नश्वरता पर जितने मार्मिक उदाहरण व सूत्र इस शास्त्र में हैं वे सब आत्म-कल्यारण के साधन स्वरूप हैं। वाणी-विलास से कर्म-मीमांसा और जगत् स्वरूप के विशद विवेचन किये जा सकते ह लेकिन धर्म और भात्मकल्याण का एक ही सूक्ष्म और सरल मार्ग है जिस पर चलने से ही कल्याण होता है और वह है वैराग्य या अनासक्ति । जब तक आसक्ति है तब तक दुःख है और यह संसार का भव-भ्रमण है। मासक्ति को समाप्त करते ही चयनिका [xi

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