Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 06
Author(s): Bhadrabahuswami, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
View full book text
________________
८१
गृहत्कल्पसूत्रनी प्रस्तावना अपवाद कहेवामां आवे छे । आ अपवादो अर्थात् बाधक नियमो उत्सर्ग एटले के मौलिक मार्गना विधान सामे होवा छतां ए, मौलिक मार्गना बाधक न होतां तेना साधक छ । आथी समजाशे के छेदआगमोमा अतिगंभीर भावे एकान्त आत्मलक्षी बनीने मौलिक अहिंसादि नियमो अंगे ते ते अनेकविध वर्तमान परिस्थितिने लक्षमा लई बाधक नियमो अंगे विधान अने विचार करवामां आव्या छे। तात्त्विक दृष्टिए विचारता एम कही शकाय के जैन छेदआगमो ए, एकान्त उच्च जीवन जीवनार गीतार्थ जैन स्थविरो अने आचार्योनी सूक्ष्मेक्षिका अने तेमनी प्रौढ प्रतिभानो सर्वोच परिचय आपनार महान शास्त्रो छ । उत्सर्ग अने अपवाद
प्रस्तुत इत्कल्पसूत्र, ए छेदआगमोमांनु एक होई एमां उत्सर्ग अने अपवाद मार्गनुं अर्थात् साधक-बाधक नियमोनुं विधान करवामां आव्युं छे । ए उत्सर्ग-अपवादो कया केटला अने कई कई बाबत विषे छे ? ए ग्रंथर्नु अवलोकन करनार जोई जाणी शकशे । परंतु ए उत्सर्ग अने अपवादना निर्माणनो मूळ पायो शो छ ? अने जीवनतत्त्वोनुं रहस्य समजनारे अने तेनुं मूल्य मूलवनारे पोताना जीवनमां तेनो उपयोग कई रीते फरवानो छे-करवो जोईए ? ए विचार, अने समजवु अति आवश्यक छ। आ वस्तु अति महत्त्वनी होई खुद नियुक्ति-भाष्यकार भगवंतोए अने तदनुगामी प्राकृत-संस्कृत व्याख्या. कारोए सुद्धा प्रसंग आवतां ए विष घणा ऊंडाणथी अनेक स्थळे विचार कर्यो छे ।
जगतना कोई पण धर्म, नीति, राज्य, प्रजा, संघ, समाज, सभा, संस्था के मंडळो,त्यागी हो के संसारी,-ए तेना एकधारा मौलिक बंधारण उपर नभी के जीवी शके ज नहि; परंतु ए सौने ते ते सम-विषम परिस्थिति अने संयोगोने ध्यानमा राखीने अनेक साधक बाधक नियमो घडवा पडे छे अने तो ज ते पोताना अस्तित्वने चिरकाळ सुधी टकावी राखी पोताना उद्देशोने सफळ के चिरंजीव बनावी शके छे। आम छतां जगतना धर्म, नीति, राज्य, प्रजा, संघ, समाज वगेरे मात्र तेना नियमोना निर्माण उपर ज जाग्या जीव्या नथी, परन्तु ए नियमोना प्रामाणिक शुद्ध एकनिष्ठ पालनने आधारे ज ते जीव्या छे अने जीवनने उन्नत बनाव्युं छे । आ शाश्वत नियमने नजर सामे राखीने, जीवनमां वीतरागभावनाने मूर्तरूप आपनार अने ते माटे एकधारो प्रयत्न करनार जैन गीतार्थ महर्षिओए उत्सर्ग-अपवादनुं निर्माण कर्यु छ ।
'उत्सर्ग' शब्दनो अर्थ 'मुख्य' थाय छे अने ' अपवाद' शब्दनो अर्थ गौण' थाय छ । प्रस्तुत छेदआगमोने लक्षीने पण उत्सर्ग-अपवाद शब्दनो ए ज अर्थ छ । अर्थात् उत्सर्ग एटले आन्तर जीवन, चारित्र अने गुणोनी रक्षा, शुद्धि के वृद्धि माटेना मुख्य नियमोनुं विधान अने अपवाद एटले आन्तर जीवन आदिनी रक्षा, शुद्धि के वृद्धि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org