Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 06
Author(s): Bhadrabahuswami, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 345
________________ षष्ठं परिशिष्टम् । १२२ गाथाधाद्यपदम् विभागः पत्राङ्कः जस्थ मतिनाणं तत्थ सुयनाणं . ३९ गाथाचाद्यपदम् विभागः पत्राङ्क: चउहिं ठाणेहिं कोहु. ३ ६१९ [स्थानाने स्था० ४ पत्र १९३-१] चकवहिउग्गहो जहण्णेणं . २०४ जस्थ य जं जाणिजा [अनुयोगद्वारसूत्रे पत्र १०] जयति जईणं पवरो चक्खुसोक्खेहिं रूवे हिं २ २७४ चत्तारि अप्पणो से [कल्पवृहद्भाष्ये] चम्म मंसं च दलाहि चाउकोणा तिति पागारा २ ३६७ [करूपविशेषचूर्णी ] चेहय कुल गण संधे [भावश्यकनियुक्तौ गा०११०१] चोरस्स करिसगस्स य छकायादिमचउसू १३४ [कल्पबृहद्भाष्ये] छट्रभत्तियस्स वि वार २ ५०० [कल्पचूणा ] छट्ठाणगअवसाणे ४ १२१८ [पञ्चसंग्रहे गा०४४४] छट्ठाणा उ असंखा १ १२१८ [पिण्डनियुक्तौ भा० गा. २९] छट्ठिविभत्तीए भनाइ जयं चरे जयं चिट्टे [दशवैकालिके अ० ४ गा०८] जह करगयस्स फासो २ ४८३ [उत्तराध्ययने अ० ३४ गा० १८] जह गोमडस्स गंधो [उत्तराध्ययने अ० ३४ गा० १६] जह बूरस्स व फासो [उत्तराध्ययने अ०३४ गा० १९] जह सरणमुक्गयाणं २ २९६ [ कल्पवृहद्भाष्ये ] जह सुरभिकुसुमगंधो २ ४८३ [उत्तराध्ययने अ० ३४ गा०१७] जहा कप्पियाकप्पियनिसीहाईणं १ २२० [कल्पचूर्णी ] जहा दुमस्स पुप्फेसु [दशवकालिके भ० १ गा० २] जहा पुनस्स कत्थई तहा ५ १५०६ [भाचाराने भु० १ ० २ उ० ६] जहियं पुण सागारिय [ कल्पवृहद्भाष्ये ] जं जुजइ उवयारे ३ ६७० [ओपनियुक्ती गा. ७४१] जंतं सेसं तं सम्मत्ते २ २६७ [कल्पचूर्णी ] जा एगदेसे अदढा उ भंडी २ ३२३ [व्यवहारपीठिका गा० १८१ कल्पवृहद्भाष्ये च] जाए सखाए निक्खंतो २ ३६३ [आचाराङ्गे श्रु० १ ० १ उ० ३] जा भिक्खुणी पिउग्गामं छदेणेणुमणूम [सिद्धहमे ८-४.२१] छेतूण मे तणाई जह सेणेव मग्गेण ५ १४६५ [आवश्यकपारिठापनिकानिर्युक्तो गा. ४७ ) ज चिय मीसे जयणा [कल्पबृहद्भाष्ये ] जस्थ पचयकोहाइसु [करूपविशेषचूरें] जावइय पजवा ते [ कल्पवृहद्भाष्य ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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