Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 06
Author(s): Bhadrabahuswami, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 257
________________ ३४ पञ्चमं परिशिष्टम् । अभिओगपरज्झस्स हु अभिकंखंतेण सुभाअभिगए पडिबद्धे अभिगमणमणाभोगे विभागः गाथाङ्कः ५ ५३२४ ८०४ ७३३ टि.. १४०१ ५०७८ ४७०३ ५३८१ ५३२८ ५ ३ २२३२ १०४५ ६२७७ ५ ५२१८ ५ ५३७२ २ ११३० ४ ३५१२ ४ ४३१२ ३ २९८३ गाथा विभाग: गाथाङ्क: अयमपरो उ विकप्पो ४ ४४६५ अयसो य अकित्ती या ५१६२ अरहस्सधारए पारए ६ ६४९० भरहंतपइट्ठाए २ १७७६ अरिसिल्लस्स व अरिसा ४ ३८६४ अरे हरे बंभण पुत्ता अलग्भमाणे जतिणं पवेसे भलभंता पवियारं ६ ६३९२ अलऽम्ह पिंडेण इमेण अजो! ४ ३५९४ अलसं घसिरं सुविरं २ १५९२ अलंभऽहाडस्स उ अप्पकम्म ४ ३६७१ अलायं घट्टियं ज्झाई ५ ५९६३ अलियमुवघायजणयं १ २७८ अवणाविंतिऽवणिति व ३ २६६१ भवताणगादि णिलोम ४ ३८३९ अवधीरिया व पतिणा ५ ४९६३ अवयक्खंतो व भया ६ ६३४१ अवरज्जुगस्स य ततो ५ ५५५४ अवरण्हे गिम्ह करणे २ १६८८ अवराह तुलेऊणं ३ २२३३ अवराहे लहुगतरो २ ९२४ भवराहे लहुगयरो ३ २४८८ अवरो फरुसग मुंडो ५ ५०२० अवरो वि धाडिओ मत्तअवरो सुच्चिय सामी ४ ४७६७ अववायाववादोवा ४ ३९०९ अवस्सकिरिया जोगे ४ ४४४७ अवस्सगमणं दिसासु ६ ६०६७ अवहारे चउभंगो ३ २६५७ अवहीरिया व गुरुणा ६ ६२०५ अवाउडं जं तु चउदिसिं पि ४ ३५०० भविओसियम्मि कहुगा अवि केवलमुप्पाडे ५०२४ अविकोविआ उ पुढा ३७८९ अविगीयविमिस्साणं ३ २९४५ अवि गीयसुयहराणं २ १२६४ अवि गोपयस्मि वि पिके ३४९ अविजाणतो पविट्ठो ३ २६६५ अविणीयमादियाणं ५ ५२०० अभिगय थिर संविग्गे अभिग्गहे दटुं करणं अभिधारत वयंतो अभिधारिंतो वञ्चति अभिधारेतो पासस्थअभिनवधम्मो सि अभा. अभिनवनगरनिवेसे अभिनिदुवार[ऽभि] निक्खमगअभिमे महव्वयपुच्छा अभिभवमाणो समणिं अभिभूतो सम्मुज्झति अभिलावसुद्ध पुच्छा अभिवड्डि इकतीसा मभुजमाणी उ सभा पवा वा अमणुण्णकुलविरेगे अमणुण्णेतर गिहिसंजइसु अमणुण्णेयरगमणे अममत्त अपरिकम्मा अमिलाई उभयसुहा अमुइचगं न धारे अमुगरथ अमुगो वच्चति अमुगस्थ गमिस्सामो अमुगदिणे मुक्ख रहो भमुगं कालमणागए अमुगिनगं न भुंजे अम्हच्चयं छूढमिणं किमट्ठा अम्हट्ठसमारद्धे अम्ह वि होहिह कर्ज अम्हं एस्थ पिसादी अम्हं ताव न जातो अम्हे दाणि विसहिमो अम्हे मो निजरट्टी अम्हेहि अभणिओ अप्पणो भम्हेहिं तहिं गएहिं سر م २ १३९१ ३ २५४५ م مه ५३७१ گر سر س ३ २२७० مه له १६१२ ४ ३६११ २ १८४५ २ १७५२ ६ ६२१३ ३ ३०२७ ५ ४९२५ २ १८९० ३ २९४६ २ १८८९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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