Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 06
Author(s): Bhadrabahuswami, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 331
________________ १०८ पञ्चमं परिशिष्टम् । गाथा विभाग: गाथाङ्क: ६ ६२०७ समणभडभाविएK समणं संजयं दंत सस्थडगी मे] सत्थपणए वसुदे सस्थपरिणादुक्मे सत्यं च सत्यवाह सरवाह अट्टाणिया सस्थिति पंच मेया साथे प्रहप्पयाणा सम्ण नेण गया सरने विविधमाणे ३ ३.८५ समणाण उते दोसा समणाणं पडिरूवी समणा समणि सपक्खो समणीणं जाणत्तं समणी समण पविढे समणुनमसमणुले समणुचापरिसंकी समणुनाऽसह अने समणुबेतर गिहि विभाग: गाथाङ्क: ३ १२०० २ १५५० २ १५६० ५ ५९७१ ५ ५०५० ३३०७७ ४ ४२३४ ४ ३७५२ २ १२६३ २ १८६२ २ १८१५ ३ २९८३ । २९७४ ५ ५४३१ २ ४ १ २ १७६४ ४५८९ ६२६ १८४४ समणे घर पासंडे समणेण कहेयम्बा समणे समणी सावग समणेहिं अमणंतो समयाइ ठिति असंखा समवाए खरसिंग समविसमाइन पास समविसमा थेराणं समहिंदा कप्पोवग ५ ६०२९ २ ८२० ५ ५३९० . ४५०५ २५.३६९ प्र. मा०४ २ १५०१ है सत्यो बहू विवित्तो खारिस हरणवस्थासईच हेतुसत्यं सानोइयाओ को सहि सुच्छति खेदणावा सदगोडणुग्गाहियम्मि सदाकुटी स्वो साहुत्त ससमय साईकयको समानणं सपणी सरकारले पकसमान महामणे समायोहि बीते सावपछि जेहिं [] सधिकारिसहे परो होह सहि सस्कमिको वा समस्सीणं सचीव असन्त्री वा, सही पढमवग्गे स्वादिकमणो धम्मो सम्पषिद्वारे उवस्सए समिहजए मुंचति सम्भावमसम्भावं सम्भावमसबभावे २०६२ ५ १९३८ समाही में भत्तपाणे . ७५५ २५८३ है २५६८ ६ ६४२५ ३ २२४१ ४ ५ समिइंसतुगगोरस समिचिंचिणिमादीणं समितीसु भावणासु य समितो नियमा गुत्तो समुदाणं पंचो वा समुदाणओदणो मत्तओ समोसरणे उसे समोसरणे केवइया सम्मजण आवरिसण सम्मतपोग्गलाणं सम्मत्तरिम अभिगओ सम्मसम्मि उ लद्धे सम्मत्ते पुण लद्धे ५५५१ ५६५९ १९५३ ४२४२ १६८१ सम्माविक इयरे विय सभए सरमेदादी सभयाऽसति मत्तस्सर समाणगुणविदुऽस्य जणो ३ ३२१४ ३ ३२६९ दि.४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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