Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 06
Author(s): Bhadrabahuswami, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 258
________________ पञ्चमं परिशिष्टम् । विभागः गाथाङ्कः ४ ४०५३ २ १६१८ ४ ३५३१ سم २८२१ गाथा भवितहकरणे सुद्धो अविदिपणमंतरगिहे अविदिण्णोवधि पाणा अविदिय जण गम्भम्मि य अविधिपरिटवणाए भविभत्ता ण छिजंति भविभागपलिच्छेदं अविभागपलिच्छेया अविभागेहिं अणंतेहिं سم سم ه س س م ک به २३३२ २९०६ ४१११ २९८७ २९४२ २६०६ ५२४८ ३५१५ २९९५ ३१३४ ३. ३१८२ टि.३ ३१८२ ४४९९ १६१२ س س س ه ه विभागः गाथाङ्कः गाधा असइ तिगे पुण जुत्ते असइ वसहीए वीसुं ४ ३८११ असइ वसहीय वीसुं ४ ४१४० असइ समणाण चोयग ५ ५५४९ असईय कवाडस्सा ४ ३९०८ असईय गम्ममाणे असईय गंतगस्स उ ४ ४५०९ असईय निग्गया खुड असईय पईवस्सा दि. ३ असईय मत्तगस्सा ३ २१७१ भराईय माउवग्गे ३२९२ असईय रुक्खमूले ५ ५६८३ असईय लिंगकरणं ४ ४३४४ असढस्स अपडिकारे ३ २५३२ ३ २५१२ असढस्सऽप्पडिकारे ६ ६४०१ असढेण समाइण्णं २ ९९५ असणाइदब्वमाणे ४ ३८६० असणाईआ चउरो ३ २७६५ असती अधाकडाणं ३ २७९२ असतीए व दवस्स व २ १३०६ असती पवत्तिणीए ३ २५५१ ४ ३६५४ असतीय भेसणं वा २ १५३५ असतोणि खोमिरज २६२६ असरीरतेणभंगे असहातो परिसिल्ल१ ७८८ असहीणे पभुपिंडं ४६५९ असहीणेसु वि साहम्मि४७६८ असहू सुत्तं दातुं ४६८३ असंपाइ महालंदे ५९१७ असंफुरगिलाणट्ठा असंविग्गमाविएसुं ४ ४०७८ असंसयं तं अमुणाण मांग ११३५ असिद्धी जइ नाएणं २ १२८० असिवम्मि णस्थि खमणं ४ ४७५८ असिवं ओम विहं वा ५ ५६६२ | असिवाइकारणेहिं ه ه ه ه अविभूसिओ तवस्सी अवि य अणंतरसुत्ते भवि य तिरिओवसग्गा अवि य हु असहू थेरो अवि य हु इमेहिं पंचहिं अवि य हु कम्मद्दण्णा अवि य हु कम्मदण्णो अवि य हु पुरिसपणीतो अवि य हु सवपलंबा अवि यंबखुजपादेण अविरुद्धा वाणियगा अविरुद्ध भिक्खगतं भवितहणाऽतुरियगई भविसिटुं सागरियं भविसेसिओ व पिंडो भविहीपुच्छणे लहुओ अवि होज विरागकरो अम्वत्तमक्खरं पुण अम्बत्ते अ अपत्ते भब्वाधाए पुणो दाई भवावडे कुटुंबी भन्वाहए पुणो दाति अम्वुकंते जति चाउभन्बोगडा उ तुझं भन्बोगडो उ भणितो अब्बोच्छित्तिनया अब्बोच्छित्ती मण पंचअन्वोच्छिन्ने भावे असइ गिहि णालियाए ه ه م م १६२१ ४१८१ ४१८२ ४६३६ २३७६ _५७६ ५ ५३८४ ४. ३५६५ ४७४० ५०४० २४०३ ३९०७ २९९५ ३२५५ ه م م ه س س له کم ک مه Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .

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