Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 06
Author(s): Bhadrabahuswami, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 274
________________ पञ्चमं परिशिष्टम् । विभागः गाथाङ्क: ५ ५०८१ २ १०७४ २ ९१४ ५ ५७६६ ६ ६३६८ ४ ४२७३ '२ १२७९ ५ .५८५३ ५ ५४८१ १ . ६१७ २ १९१० ५ . ५२५३ ५ ५३०७ ५ .५२९४ गाथा एवं एक्वेक्कदिणे एवं एसा जयणा एवं खओवसमिए एवं खलु अच्छिन्ने एवं खलु संविग्गे एवं खु थूलबुद्धी एवं खु भावगामो एवं खु लोइयाणं एवं गहवइसागारिए एवं गिलाणलक्खेण एवं च पुणो ठविए एवं च भणित मित्तम्मि एवं च भणियमेत्ते एवं चिय निरविक्खा एवं चिय मे रति एवं ठियम्मि मेरं एवं तस्थ वसंतीएवं ता अदुगुंच्छिए एवं ता अहिटे एवं ता असहाए एवं ता गिहवासे एवं ता गेण्हते एवं ता जिणकप्पे एवं ता तिविहजणे एवं ता दप्पेणं एवं ता पमुहम्मी एवं ता पंथम्मि एवं ताव दिवसतो एवं ता सविकारे एवं तु अगीतत्थे एवं तु अगंतेहिं एवं तु असंभो. एवं तु असढभावो एवं तु इंदिएहिं एवं तु केह पुरिसा एवं तु गविढेसुं एवं तु चिट्ठणादिसु एवं तु ठाविए कप्पे एवं तु दियागहणं विभागः गाथाङ्कः गाथा ५ ५७७१ एवं तु सो अवधितो २ २०६८ एवं तेसि ठियाणं एवं दबतो छण्हं ४ ४७२२ एवं दिवसे दिवसे ५ ५४६३ । एवं दुग्गतपहिता १ २२६ । एवं नामं कप्पति २ ११७ एवं पडिच्छिऊणं ३ २२८४ एवं पमाणजुत्तं १ ६८३ एवं पि अठायते २ १८९१ । एवं पि अलब्भंते १५९१ एवं पि कीरमाणे ३३६९ २००८ एवं पिपरिचत्ता ३ २२०४ एवं पि भाणभेदो ३ २८४६ एवं पि हु उवघातो एवं पीईवड्डी २ २०८२ एवं पुच्छासुद्धे २ ८६७ एवं फासुमफासुं ५ ५०६७ एवं बारस मासे २ ८८५ एवं भवसिद्धीया २ १९४७ एवं भायणभेदो ३ २८०२ ५ ५२७० एवं मणविसईणं ४ ४२१७ एवं लेवग्गहणं ३ २२०६ एवं वासावासे ३ २६४३ एवं वितिगिच्छो वी ५ ५६१६ __ एवं विसुद्धनिगमस्स ५ ५८३२ एवं सड्ढकुलाई २५५९ एवं समाणिए कप्पे एवं संसारीणं ७० एवं सुत्तविरोधो १६१७ एवं सुत्तं अफलं ५६१० ५९२६ ५ ५१५६ एवं सुनीहरो मे ६४८ एस उ पलंबहारी ३ २४१२ एसणदोसे व कए ६ ६४६६ एसणदोसे सीयह ३ २९८४ | एसणपेलण जोगाण mann 20 or my w or a 5 s sms 20 ar २ ..१८१८ ५ . ५७७० २ ११३७ ..टि.३ س م مه نم ४ ..४६८९ ५ . ५८१५ २ १०९९ २ . १५८६ ६ ६४७९ १ १०४ ४.४२४१ ३ . २५६१ ५ . ५२९० ६ ६१७४ ६ ..६३४४ २. ९२३ २ .१६०३ ४.४५२० ५..५५०० نمک می Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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