Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Amar Publications
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प्रस्तुत ग्रन्थ : ही होता, तब तो संपादक मुनिराजों का उक्त एकांगी मार्ग उचित भी माना जा सकता था, किन्तु निशीथ की टीकाओं में भारतीय इतिहास के सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक, दार्शनिक आदि विविध अंगों को स्पर्श करने वाली प्रचुर सामग्री होने के कारण, तत्-तत् क्षेत्रों में संशोधन करने वाले जिज्ञासुओं के लिये भी निशीथ एक महत्त्वपूर्ण उपयोगी ग्रन्थराज है, अतः उसकी ऐकान्तिक गोप्यता विद्वानों को कथमपि उचित प्रतीत नहीं होती। ऐसी स्थिति में भारतीय इतिहास के विविध क्षेत्रों में संशोधन कार्य करने वाले विद्वानों को सभाष्य एवं सचूणि निशीथ सूत्र उपलब्ध करा कर, उक्त मुनिराजद्वय ने विद्वानों को उपकृत किया है, इसमें संदेह नहीं। जिस सामग्री का उपयोग करके प्रस्तुत संस्करण का प्रकाशन हुअा है, वह सामग्री पर्याप्त है, ऐसा नहीं कहा जा सकता। फिर भी संपादकों ने अपनी मर्यादा में जो कुछ किया है और विद्वानों के समक्ष सुवाच्य रूप में निशीथसूत्र, नियुक्तिमिश्रित भाष्य और विशेष चूणि प्रकाशित कर जो उपकार किया है, वह चिर स्मणीय रहेगा, यह कहने में जरा भी अतिशयोक्ति नहीं है। संपादकों का इस दिशा में यह प्रथम ही प्रयास है, फिर भी इसमें उन्हें जो सफलता मिली है, वह कार्य की महत्ता और गुरुता को देखते हुए- साथ ही समय की अल्पावधि को लक्ष्य में रखते हुए अभूतपूर्व है । अत्यन्त अल्प समय में ही इतने विराट ग्रन्थ का संपादन और प्रकाशन हुआ है । समय और अर्थव्यय दोनों ही दृष्टियों से देखा जाए, तो वह नगण्य ही है। किन्तु जो कार्य मुनिराजों की निष्ठा ने किया है, वह भविष्य में होने वाले अन्य महत्वपूर्ण कार्यों के प्रति उनके अन्तर्मन को उत्साहशील बनाएगा ही, तदुपरान्त विद्वान लोग भी अब उनसे इससे भी अधिक प्रभावोत्पादक ग्रन्थों के प्रकाशन-संपादन की अपेक्षा रखेंगे- यह कहने में तनिक भो संकोच नहीं । हम आशा करते हैं कि उपाध्याय श्री अमर मुनि तथा मुनिराज श्री कन्हैयालाल जी, प्रस्तुत क्षेत्र में जब प्रथम बार में ही इस उल्लेखनीय सफलता के साथ आगे आये हैं, तब वे दोनों अपने प्रस्तुत सुभग सहकार को भविष्य में भी बनाये रखेंगे और विद्वानों को अनेकानेक ग्रन्थों के मधुर फलों का रसास्वादन कराकर अपने को चिर यशस्वी बनाएंगे ! कहीं यह न हो कि प्रथम प्रयास के इस अभूत पूर्व परिश्रम के कारण आने वाली थकावट से प्रस्तुत क्षेत्र ही छोड़ बैठे, फलस्वरूप हमें उनसे प्राप्त होने वाले सुपक्व साहित्यिक मिष्ट फलों के रसास्वाद से वंचित होना पड़े। हमारी और अन्य विद्वानों की उनसे यह विनम्र प्रार्थना है कि वे इस क्षेत्र में अधिकाधिक प्रगति करें और यथावसर अपनी अमूल्य सेवाएं देते रहें।
निशीथ का महत्व :
छेद सूत्र दो प्रकार के हैं-एक तो अंगान्तर्गत और दूसरे अंग-बाह्य । निशीथ को अंगान्तर्गत माना गया है, और शेष छेद सूत्रों को अंग बाह्य; -यह निशीथ सूत्र की महत्ता को सप्रमाण सूचित करता है । छेदसूत्र का स्वतंत्र वर्ग बना और निशीथ की गणना उसमें की जाने लगी , तब भी वह स्वयं अंगान्तर्गत ही माना जाता रहा -इस बात की सूचना प्रस्तुत निशीथ सूत्र की चूणि के प्रारंभिक भाग के अध्येतानो से छिपी नहीं रहेगो । तथापि यदि स्पष्ट रूप से देखना हो, तो इसके लिए निशीथ भाष्य की गा० ६१६० और उसकी सोत्थान चूणि को पढ़ना चाहिए। वहाँ शिष्य स्पष्ट रूप से प्रश्न करता है कि कालिक श्रुत प्राचारांगादि हैं और प्रकल्प-निशीथ उमी का एक अंग है। प्रतएव वह नो पार्य रक्षित के द्वारा अनुयोगों का पार्थक्य किए
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