Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Amar Publications
View full book text
________________
निसीह शब्द और उसका अर्थ :
१३
ग्रारण्यकादि वैसे नहीं हैं । ग्रारण्यकादि शास्त्र तो सब कोई सुन सकते हैं, जब कि प्रस्तुत निशीथ शास्त्र अन्य तीर्थिकों के श्रुतिगोचर भी नहीं होता । स्वतीर्थिकों में भी प्रगीतार्थ आदि इसके अधिकारी नहीं हैं । यही इसकी विशेषता है ।"
यह चर्चा भी इस बात को सिद्ध करती है कि मिसीह शब्द का सम्बन्ध निषेध से नहीं, किन्तु रहस्यमयता या गुप्तता से है । अर्थात् निसीह का जो ग्रप्रकाश रूप निशीथ ग्रर्थ किया गया है, वही मौलिक अर्थ है ।
प्रस्तुत निशीथ सूत्र का तात्पर्य निषेध से नहीं है - इसकी पुष्टि नियुक्ति, भाष्य तथा चूर्णि ने, जो इस शास्त्र का प्रतिपाद्य विषय या अधिकार बताया है, उससे भी होती है । कहा गया है कि प्रचारांग सूत्र के प्रथम नव ब्रह्मचर्य अध्ययनों और चार चूलाम्रों में उपदेश दिया गया है, अर्थात् कर्तव्याकर्तव्य का विवेक बताया गया है। किन्तु पांचवीं चूला निशीथ में वितथकर्ता के लिये प्रायश्चित्त का विधान है । अर्थात् निशीथ चूला का प्रतिपाद्य विषय प्रायश्चित्त है । प्रतएव स्पष्ट है कि प्रस्तुत 'मिसीह' शब्द का संस्कृतरूप 'निषेध' नहीं बन सकता ।
'निशीथ' के पर्याय :
आचारांग की चूलाओं के नाम नियुक्ति में जहाँ गिनाए हैं, वहाँ पांचवीं चूला का नाम 'आयारपकप्प' 3 = 'आचार प्रकल्प' बताया गया है । आगे चलकर स्वयं नियुक्तिकार ने पाँचवीं चूला का नाम निसीह" = निशीय भी दिया है। अतएव निशीथ अथवा ग्राचार प्रकल्प, ये दोनों नाम इसके सिद्ध होते हैं" । टीकाकार भी इसका समर्थन करते हैं। देखिए, टीकाकार ने 'प्रायारपकल्प' शब्द का पर्याय 'निशीथ' दिया है - " श्राचारप्रकल्प :- निशीथ : " ( प्राचा० नि० टी० २९१ ) । टीका में अन्यत्र चूलाओं के नाम की गणना करते हुए भी टीकाकार उसका नाम 'निशीथाध्ययन' देते हैं । उक्त प्रमाणों पर से यह स्पष्ट हो जाता है कि ये दोनों नाम एक ही सूत्र की सूचना देते हैं ।
निशीथ सूत्र के लिए पकप्प शब्द भी प्रयुक्त है । परन्तु, ग्रायारपकप्प का ही संक्षिप्त नाम 'पकप्प' हो गया है, ऐसा प्रतीत होता है। क्योंकि निशीथ चूर्णि के प्रारंभ में - "एवं कप्पणामो पकप्पनामस्स विदश्य वन्ने" - (नि० चू० पृ० १) ऐसा चूर्णिकार ने कहा है । ग्रयार शब्द का छेद
१. नि० गा० ए० की चूलि
२
नि० गा० ७१
३.
प्राचा० नि० २९१ । नि० गा० २
४.
प्राचा० नि० गा० ३४७
निशीथ चूर्णिकार भी इसे निसीह चूला कहते हैं - नि० ० १
प्राचा० नि० टी० गा० ११
५
६.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org