Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Amar Publications
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है और कोई भी उसे पढ़ सकता है। मेरे विचार में तत्कालीन लेखन और अद्यतन मुद्रग की स्थिति में कोई विशेष अन्तर नहीं है। और फिर आज के युग में साहित्य जैसी सामग्री का कोई कब तक संगोपन किए रख सकता है ? जैन या अजैन कोई भी विद्वान्, कभी भी, किसी भी अन्य को मुद्रणकला की नोक पर चढ़ा सकता है। आज साहित्य के प्रकाशन या अप्रकाशन का एकाधिकार किसी एक व्यक्ति या समाज के पास नहीं है।
एक बात और है। भाष्य तथा चूणि के साथ छेदसूत्रों का प्रकाशन होने से जैन आचार को अधिक महत्त्व मिल सकता है । दो-चार बातों के मर्मस्थल को ठीक तरह न समझने के कारण, तथा तयुगीन देश काल की स्थितियों का तटस्थ अध्ययन न करने के कारण, संभव है, थोड़ा बहुत ऊहापोह अज्ञ समाज में हो सकता है। किन्तु जब हमारे साध्वाचार के मौलिक तथ्य प्रकाश में आएंगे, जैन भिक्षु को चर्या का क्रमबद्ध वर्णन विद्वानों के समक्ष पहुँचेगा, आदर्श और यथार्थ का सुन्दर सर पय अध्ययन करने में आएगा, सिद्धान्त और जीवन के संघर्ष में कब, किसका, किस तरह बलाबल होता है-यह समझा जाएगा, तो मैं अधिकार की भाषा में कहूँगा कि जैन तत्त्वज्ञान का गौरव बढ़ेगा ही, घटेगा नहीं।
प्राज के जैन भिक्षों के लिए भी छेदसूत्रों के इस प्रकार सर्वाङ्गीण विराट प्रकाशन आवश्यक हैं। कारण ? जिस आचार का आज भिक्षु पालन करते हैं, वे स्वयं उसका हार्द नहीं समझ पाते हैं । आदरणीय पुण्य विजयजी के शब्दों में "माज उन्हें अच्छी तरह पता नहीं कि उनके अपने धार्मिक प्राचार तथा राति नीति क्या-क्या है ? किस भूल आधार पर वे निर्दिष्ठ एवं योजित हुए हैं ! उनका अपना क्या महत्त्व है ? और वह किस दृष्टि से है ? प्राचीन युग में साधुजीवन के नियम कितने अधिक कड़क थे, और क्यों थे ? उन नियमों में भाज कितनी विकृति, शिथिलता तथा परिवर्तन आया है? साधुजीवन में तथा सामान्य धार्मिक नियमों में द्रव्य, क्षेत्र, काल, और भाव के ज्ञाता दीघदर्शी प्राचार्यों ने किस-किस तरह का किस-किस स्थिति में परिवर्तन किया है ?" यदि छेदसूत्रों का गंभीर अध्ययन किया जाए तो उपर्युक्त सब स्थितियों पर स्पष्ट प्रकाश पड़ सकता है, जिसके द्वारा हम अपने अतीत और वर्तमान को जीवन-पद्धति एवं साधनापद्धति का तुलनात्मक निरीक्षण कर सकते हैं। इतना ही नहीं, यदि जरा साहस से काम लें, जीवन-निर्माण के लिए सुदृढ़ अभीप्सा जागृत कर लें, तो भविष्य के लिए भी हम अपना जीवन-पथ प्रशस्त कर सकते हैं। जहाँ तक मेरा अध्ययन मुझे कुछ कहने की आज्ञा देता है, मैं कह सकता हूं कि छेदसूत्रों से सम्बन्वित इस प्रकार के व्यापक प्रकाशन हमारे मिथ्याचारों का शुद्धीकरण करेंगे, हमारे विभिन्न साम्प्रदायिक अहं को ध्वस्त करेंगे, हमें साध्वाचार के मूल स्वरूप की यथावत् सुरक्षा करते हुए भी देश कालानुसार उचित कर्तव्य-पथ के लिए प्रशस्त प्रेरणा देंगे। हाँ, एक बात ध्यान में रखने-जैसी है:
एक बात और भी है, जिसका उल्लेख करना अत्यावश्यक है। वह यह कि भाष्य तथा चूर्णि की कुछ बातें अटपटी-सी है। इस सम्बन्ध में कुछ तो उस युग की साम्प्रदायिक मान्यताएँ हैं और कुछ तयुगीन देश काल की विचित्र परिस्थितियाँ है । अत. विचारशील पाठकों से अनुरोध है कि वे तत् तत् स्थलों का बहुत गम्भीरता से अध्ययन करें, व्यर्थ ही अपने चित्त को चल-विचल न बनाएँ । ऐसे प्रसंगों पर हंस बुद्धि से काम लेना उपयुक्त होता है। प्राचीन प्राचार्यों ने अपने ग्रन्थों में जो कुछ लिखा है, वह सब कुछ सब किसी के लिए नहीं है । और सर्वत्र एवं सर्वदा के लिए भी नही है। सतत प्रवहमान चिरन्तन सत्य का अमुक
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