Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Amar Publications
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विषयानुक्रम
MH
rr
४३
क्षेत्र
६६
विषय गाथाङ्क पृष्टाङ्क
विषय
गाथाङ्क पृष्ठाङ्क ४ चूला-द्वार .६३-६६ ३२-३३ मूलगुग प्रतिसेवना के ६ भेद ८६ ४१ चूला के निक्षेप
प्रकारान्तर से ४ भेद
दर्प-प्रतिसेवना और कल्प-प्रति द्रव्य चला के ३ भेद क्षेत्र , , ३ भेद
सेवना के अवान्तर भेद ६०-६१ ४१-४२ काल ,, , का स्वरूप
प्रमत्त और अप्रमत्त का स्वरूप ३२-३३
६२ ४२
दर्प-प्रतिसेवना और कल्प-प्रति भाव , ,.. "
सेवना में कल्प-प्रतिसेवना का ५ निशीथ-द्वार ६७-७० ३३-३५ प्रथम व्याख्यान करने का हेतु ६३-६४ निशीथ के निक्षेप
अप्रमाद का उपदेश द्रव्य निशीथ का सोदाहरण कथन ६८ ३३-३४
अनाभोग प्रतिसेवना का स्वरूप ६६ सहसात्कार ,
१७ काल "
ईर्या समिति सम्बन्धी सहसा"
, " , भाव ,
स्कार प्रतिसेवना का स्वरूप १८-१००४४-४५ निशीथ शब्द का अर्थ
भाषा समिति सम्बन्धी सहसाभाव निशीथ का स्वरूप ७० ३४-३५ त्कार प्रतिसेवना का स्वरूप १०१ ४५
एषणा प्रादि शेष तीन समिति ६ प्रायश्चित्त-द्वार ७१-४६६ ३५-१६६
मम्बन्धी प्रतिसेवना। १०२-१०३ ४५-४६ अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार
प्रमाद-प्रतिसेवना,के ५ भेद १०४ ४६ और अनाचार का प्रायश्चित्त ७१ ३५ आचाराङ्ग की प्रारम्भ की
कषाय-द्वार
१०५-११७ ४६-४६ चारचूलों में निर्दिष्टाचार
कषाय-प्रतिसेवना के ११ भेद १०५ विधि से विारीत प्राचरण
कषाय-प्रतिसेवना सम्बन्धी करने पर प्रायश्चित ।
प्रायश्चित्त
१०६-११७ ४७-४६ प्रतिसेवक, प्रतिसेवना और . ..
विकथा-द्वार
११८-१३० ४६-५३ प्रतिसेव्य का स्वरूप ७२-७३
विकथा-प्रतिसेवना के भेद ११८-११६ ४६-५० प्रतिसेवना के दो भेद ७४-७५ ३६-३७ । स्त्री-कथा सम्बन्धी जाति आदि प्रतिसेवक प्रादि का प्रका
कथाओं का स्वरूप और रान्नर से स्वरूप कथन
तत्सम्बन्धी प्रायश्चित्त ११६-१२० ५० प्रतिसेवक द्वार
३७ स्त्री कथा के दोष और तत्सम्बन्धी प्रतिसेवक के प्रकार ७७ ३७ प्रायश्चित्त
१२१ प्रतिसेवक-सम्बन्धी भंगरचना ७८-८७
भक्त कथा के दोष
, १२२-१२४ प्रतिसेवना-द्वार
देश , , , १२५-१२७ ५१-५२ प्रतिसेवना के दो भेद ८८ ४ ० राज ,, ,, १२८-१३० ५२-५३
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