Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Amar Publications

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Page 197
________________ भाष्यगाथा १३२-१३८] पीठिका ५५ इदाणिं थीणद्धी सउदाहरणा भण्णति - थीणती किमुक्तं भवति । ? भाइ, इदं चित्तं तं थीणं जस्स अच्चंत रसणावरणकम्मोदया सो थीणद्धी भण्णति । तेण य थीणेण ण सो किंचि उवलभति । जहा घते उदके वा थोणे ण किंचिदुवलन्भति । एवं चित्ते वि । इमे उदाहरणा - पोग्गल-मोयग-दंते, फरुमग वडसाल-भंजणे चेव । णिद्दप्पमादे एते, आहरणा एवमादीया ॥१३॥ पोग्गलं मसं । मोयगा मोदगा एव । दंता हत्यिदंता । फरसगो कुभकरो । वडसाला डाली । एते पंचूदाहरणा थीणद्धीए ॥१३॥ पोग्गलवक्खाणं - पिसियासि पुव्य महिसि, विगिचितं द? तत्थ णिसि गंतुं। अण्णं हतं खइतं, उवस्सयं सेसयं णेति ॥१३६ ॥ जहा - एगमि गामे एगो कुडुबी । पकारिण य तलियाणि य तिम्मसु य अरणेगसो मंसप्पगारा भक्खयति । सो य तहारूवाण थेराण अंतिए धम्म सोऊण पवतितो। विहरति गामाइमु । तेगा य एगस्थ गामे मंसथिएहि महिसो विकिच्चमाणो दिट्ठो। तरस मांसअहिलासो जायो। सो तेगाभिलासेण अन्वोच्छिण्णेणेव भिक्खं हिंडितो। अव्वोच्छिण्णेणेव भुत्तो। एवं अवोच्छिणेण वियारभूमि गतो। चरिमा सुत्तपोरिसी कता । सभोवासणं' पडिसिया य पोरिसी । तदभिलासो चेव सुत्तो। सुत्तरसेव थीणद्धी जाता। सो उढितो गयो महिसमंडलं । अण्णं हतु भक्खिय । सेस आगंतु उवस्सगस्स उवरि ठवियं । पच्चूसे गुरूण आलोएति “एरिसो सुविरणो दिट्ठो”। साहूहि दिसावलोयं करेंतेहिं दिटुं कुणिमं । जाणियं जहा एस थीणद्धी । थीणद्धियस्स लिंगपारंचियं पच्छित्तं । तं से दिण्णं ॥१३६॥ इदाणिं मोअगो त्ति - मोयगभत्तमलद्ध, भेत्तु कवाडे घरस्स णिसि खाति । भाणं च भरेत्तणं, आगतो आवस्सए वियडे ॥१३७॥ एगो साह भिक्खं हिंडतो मोयगं भत्तं पासति । सुचिरं उ इक्खियं । ण लद्ध। गो जाव तदझवसितो सुत्तो। उप्पण्णा थीणिद्धी । रातो तं गिहं गंतूण भेत्तूण कवाडं मोदगे भक्खयति। सेसे पडिग्गहे घेत्तुमागो । वियडणं चरिमाते, भायणाणि पडिलेहंतेण दिट्ठा । सेसं पोग्गलसरिसं ॥१३७॥ फरुसगे त्ति - अवरो फरुसगमुंडो, मट्टियपिंडे व छिदितुं सीसे । एगते पाडेति, पासुत्ताणं वियडणा तु ॥१३८॥ एगत्थपतिवादगोदाहरणाणं कमो उक्कमो वा ण विज्जतीति भण्णति फरुसगं । एगंमि महंते गच्छे कुभकारो पव्वतितो। तस्स रातो सुत्तस्स थीणिद्धी उदीण्णा । सो १ पाउसिया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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