Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Amar Publications
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निशीथ विशेष चूणि और उसके कर्ता : किन्तु लेखक प्राकृत लिखने के लिये प्रवृत्त है-यह स्पष्ट है । इसकी भाषा का अध्ययन एक स्वतन्त्र विषय हो सकता है, जो भाषाशास्त्रियों के लिये एक नई वस्तु होगा। प्रसंगाभावतया यहाँ इस विषय में कुछ नहीं लिखना है।
निशीथ चूणि एक विशालकाय ग्रन्थ है। प्रायः सभी गाथानों का विवरण विस्तार से देने का प्रयत्त है। स्वयं भाष्य ही विषयवैविध्य की दृष्टि से एक बहुत बड़ा भंडार है। और भाष्य का विवरण होने के नाते चूणि तो और भी अधिक महत्वपूर्ण विषयों से खचित है-यह असंदिग्ध है। चूणिगत महत्त्व के विषयों का परिचय यथास्थान आगे कराया जाएगा। यहाँ इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि चूर्णिकार ने अपने समय के युग का प्रतिबिम्ब शब्द-बद्ध कर दिया है। उस काल में मानव-बुद्धि-जिन विषयों का विचार करती थी और उस काल का मानव जिस परिस्थिति से गुजर रहा था, उसका तादृश चित्र प्रस्तुत ग्रन्थ में उपस्थित हुआ है, यह करना अतिशयोक्ति नहीं।
निशीथ चूणि के कर्ता के विषय में निम्न बातें चूणि से प्राप्त होती हैं :
(१) निशीथ विशेष चूणि के कर्ता ने पीठिका के प्रारंभ में 'पज्जुण्ण खमासमण' को नमस्कार किया है और उन्हें 'प्रत्थदायि' अर्थात् निशीथ शास्त्र के अर्थ का बताने वाला कहा है, विन्तु अपना नाम नहीं दिया। पट्टावली में कहीं भी 'पज्जुण्ण खमासमरण' का पता नहीं लगता। हाँ इतना निश्चित है कि ये प्रद्युम्नक्षमाश्रमण, सन्मति टीकाकार अभय देव के गुरु प्रद्युम्न से तो भिन्न ही हैं। क्योंकि दोनों के समय में पर्याप्त व्यवधान है। फिर भी इतना अवश्य कहा जा सकता है कि चूर्णिकार के उपाध्याय प्रद्युम्न क्षमा श्रमण थे। (२) १३ वे उद्देश के अंत में निम्न गाथा चूणिकारने दी है :
संकरजडमउडविभूषणस्स तरणमसरिसणामस्स ।
तस्स सुतेणेस कता विसेसचुएणी णिमीहस्स ।। प्रस्तुत गाथा में अपने पिता का नाम सूचित किया है। 'शंकर-जटारूप मुकुट के विभूषण रूप' और 'उसके सदृश नाम को धारण करने वाले' इन दो पदों में चूर्णिकार के पिता का नाम छिपा हुअा है। प्रस्तुत में शंकर के मुकुट का भूषण यदि 'सर्प' लिया जाए तो 'नाग'; यदि 'चन्द्र' लिया जाय तो 'शशी' या 'चन्द्र' फलित होता है । सष्ट निर्णय नहीं होता। (३) १५ वें उद्देश के अंत में निम्न गाथा है :--
रविकरमभिधाणऽक्खरमत्तम वग्गंत-अक्खरजुएणं ।
खामं जस्सिस्थिर सुनेण तस्से कया खुएणी ॥ इस में चूर्णिकार ने अपनी माता का नाम सूचित किया है । (४) १६ वें उद्देश के अन्त में निम्न गाथा चूर्णिकारने दी है :
देहडो सीह थोरा य ततो जेट्टा सहोयरा। कणि ट्ठा देउलो गएणो सत्तमो य तिइज्जगो । एतेसि मल्झिमो जो उ मंदे वी तेण वित्तिता ॥
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