Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Amar Publications
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निशीथ : एक अध्ययन
शक- यवनादि विरूप हैं; क्योंकि वे ग्राथों से वेश, भाषा और दृष्टि में भिन्न हैं। मगधादि साढ़े पच्चीस ' देशों की सीमा के बाहर रहने वाले अनायें प्रात्यंतिक हैं । दाँत से काटने वाले दस्यु हैं और हिंसादि प्रकार्य करने वाले अनार्य हैं ( नि० गा० ५७२७) । और जो अव्यक्त तथा अस्पष्ट भाषा बोलते हैं, वे मिलक्खू - म्लेच्छ हैं ( गा० ५७२८ ) । आंध्र और द्रविड देश को स्पष्ट रूप से अनार्य कहा गया है। तथा शकों और यवनों के देश को भी अनार्य देश कहा है (५७३१) । पूर्व में मगध, दक्षिण में कोसंबी, पश्चिम में थूणाविसय और उत्तर में कुणालाविसययह ग्रार्य देश की मर्यादा श्री । उससे बाहर ग्रनार्य देश माना जाता था ( गा० ५७३३ ) ।
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निम्नस्तर के लोग आर्थिक दृष्टि से अत्यन्त गरीब मालूम होते हैं; परिणामस्वरूप उन्हें धनिकों की नौकरी ही नहीं, कभी-कभी दासता भी स्वीकार करनी पड़ती थी । शिल्पादि सीखने के लिये गुरु को द्रव्य दिया जाता था। जो ऐसा करने में असमर्थ होते, वे शिक्षण काल पर्यन्त, श्रथवा उससे अधिक काल तक के लिये भी गुरु से अपने को अवबद्ध कर लेते थे ( श्रबद्ध ) (नि० गा० ३७१२) । अर्थात् उतने समय तक वे गुरु का ही कार्य कर सकते थे, अन्य का नहीं । गुरु की कमाई में से प्रोबद्ध (अवबद्ध) को कुछ भी नहीं मिलता था । किन्तु मृतक= नौकर को अपनी नौकरी के लिये भृति-वेतन मिलता था (नि० गा० ३७१४ और ३७१७ की चूर्णि ) ।
भृतक - नौकर चार प्रकार के होते थे :
( १ ) दिवसभयग - दिवस भृतक - प्रतिदिन की मजदूरी पर काम करने वाले ।
(२) यात्राभृतक - यात्रापर्यंत साथ देकर नियत द्रव्य पाने वाले । ये यात्रा में केवल साथ देते थे, या काम भी करते थे । और इनकी भृति तदनुसार नियत होती थी, जो यात्रा समाप्त होने पर ही मिलती थी ।
( ३ ) कम्बालभृतक - ये जमीन खोदने का ठेका लेते थे । इन्हें उड्डु ( गुजराती-प्रोड ) कहा जाता था ।
( ४ ) उच्च सभयग – कोई निश्चित कार्य विशेष नहीं, किन्तु नियत समय तक, मालिक, जो भी काम बताता, वह सब करना होता था। गुजराती में इसे 'उचक' काम करने वाला कहा जाता है (नि० गा० ३७१८-२० ) ।
गायों की रक्षा के निमित्त गोपाल को दूध में से चतुर्थांश, या जितना भी आपस मैं निश्चत = तय हो जाता मिलता था । यह प्रतिदिन भी ले लिया जाता था, या कई दिनों का मिलाकर एक साथ एक ही दिन भी (नि० गा० ४५०१-२ चू० ) ।
दासों के भी कई भेद होते थे । जो गर्भ से ही दास बना लिया जाता था, वह गालित दास कहलाता था । खरीद कर बनाये जाने वाले दास को क्रीत दास कहते थे । ऋण
१. साढ़े पच्चीस देश की गरणना के लिये, देखो - बृ० गा० ३२६३ की टीका ।
२. सौराष्ट्र में श्राज भी इस नाम की एक जाति है, जो भूमि खनन के कार्य में कुशल है ।
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