Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Amar Publications
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सांस्कृतिक सामग्री :
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प्रादि । (नि० गा० ३१८२-८६ ० ) । उक्त कथा में भगवान महावीर की उनके जीवनकाल में ही सर्वालंकारभूषित प्रतिमा बन गई थी और वह जीवंतसामी प्रतिमा कही जाती थी, यह तथ्य ऐतिहासिक महत्त्व का है। तथा हिंसा की दृष्टि से उदयन का प्रद्योत से यह कहना कि पूरे जनपद की हत्या न करके, हम दोनों ही परस्पर व्यक्तिगत युद्ध कर, क्यों न जय-पराजय का निर्णय करलें - यह काफी ध्यान देने योग्य बात है ।
चन्द्रगुप्त से लेकर सम्प्रति तक के मौर्यवंश का इतिहास भी, निशीथ भाष्य और चूर्णि से, स्पष्टतः ज्ञात होता है। इसमें कई तथ्य महत्व के हैं । और संप्रति ने किस प्रकार आंध्रafar - कुडक - महाराष्ट्र प्रादि दक्षिण देशों में जैन धर्म का प्रचार किया, इसका ऐतिहासिक वर्णन मिलता है। साथ ही जैन ग्राचार के विषय में तत्कालीन आचार्यों की क्या धारणा थी, इसका भी प्रभास मिलता है । प्राचार्यों में स्पष्ट रूप से दो दल थे - एक दल कठोर नियम पालन के प्रति तीव्र प्राग्रही था, जबकि दूसरा दल प्राचार को कुछ शिथिल करके भी शासन की प्रभावना के लिये उद्यत था' । चन्द्रगुप्त का मंत्री चाणक्य श्रावक था और वह जैन श्रमणों की भक्ति करता था। एक बार उसने सुबुद्धि मन्त्री के बध के लिये पुष्पों को विष-मिश्रित भी किया था । (नि० गा० ४४६३-५; ६१६ ) । चन्द्रगुप्त के वंश के विषय में जिन क्षत्रिय राजाओं को ज्ञान था कि मौर्यवंश तो मयूर - पोषकों का वंश है ( अतएव नीच है ), वे चन्द्रगुप्त की आज्ञा का पालन नहीं करते थे । चाणक्य ने मौर्यवंश की आज्ञा की धाक जमाने के उद्देश्य से आज्ञा-भंग के कारण एक समग्र गाम को जला दिया था:- ऐसा भी उल्लेख है ।
शालवाहण (शालिवाहन) राजा की स्तुति, भाष्यकार के समय इस रूप में प्रचलित थी कि पृथ्वी के एक छोर पर हिमवंत पर्वत है और दूसरी ओर राजा सालवाहरण है - इसी कारण पृथ्वी स्थिर है (नि० गा० १५७१) । कालकाचार्य ने 'पतिट्ठाण' नगर के 'सायवाहण' राजा के अनुरोध पर पज्जोसवरणा का दिन पंचमी के स्थान में चतुर्थी किया; यह ऐतिहासिक तथ्य भी निशीथ में उल्लिखित है । इसी प्रसंग में उज्जेगी के बलमित्र भानुमित्र का भी वर्णन है (नि० गा० ३१५३) ।
एक मुरुण्डराज का उल्लेख, निशीथ में, कितनी ही बार माया है । वह पादलिप्त - सूरि का समकालीन है (नि० गा० ४२१५, ४४६० ) ।
महिति नामक राजा की उपेक्षा के कारण उसकी कन्याएं किस प्रकार शीलभ्रष्ट की गई — इस सम्बन्ध में एक दृष्टान्त दिया गया है (नि० गा० ४८५९) । यह कोई दुर्बल राजा
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होना चाहिए ।
युवराज के लिये अनुप्रभु शब्द का प्रयोग होता था (नि० गा० १३४८, ३३६२) । और हेम नामक एक राजकुमार के विषय में कहा गया है कि उसने इन्द्रमह के की रूपवती कन्यायों को अपने अन्तःपुर में रोक लिया था। नगरजनों के
१. नि० गा० २१५४, ४४६३-६५, ५७४४-५८; बृ० गा० ३२७५-३२८६ । २. नि० गा० ५१३८-३९ । बृ० गा० ५४८८-८६ ।
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लिए एकत्र हुई नगर द्वारा राजा के पास
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