Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Amar Publications
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निशीथ : एक अध्ययन जोड़ी हैं। बृहत्कल्प भाष्य, और व्यवहार भाष्य, यदि इन दो में उपलब्ध गाथाएं ही निशीथ भाष्य में से पृथक् कर दी जायं, तो इतने बड़े ग्रन्थ का चतुर्थांश भी शेष नहीं रहेगा, यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं ; किन्तु वास्तविक तथ्य है। इसकी स्पष्ट प्रतीति निम्न तुलना से वाचकों को हो सकेगी। इससे इतना तो सिद्ध होता ही है कि जैन शास्त्रगत विषयों की सुसंबद्ध व्याख्या करने की परंपरा भाष्यों के समय में सुनिश्चित हो चुकी थी। जिसका आश्रय लेना व्याख्याता के लिये अनहोनी बात नहीं थी।
निशीथ भाष्य और व्यवहार भाष्य की गाथाओं की अकारादि क्रम से बनी सूची मेरे समक्ष न थो, केवल बृहत्कल्प भाष्य की अकारादि क्रम सूची ही मेरे समक्ष रही है। फिर भी जिन गाथाओं की उक्त तीनों भाष्यों में एकता प्रतीत हुई, उन की सूची नमूने के रूप में यहाँ दी जाती है। इस सूची को अंतिम न माना जाय। इसमें वृद्धि की गुंजाइश है। इससे अभी केवल इतना ही सिद्ध करना अभीष्ट है कि निशीथभाष्य में केवल चतुर्थांश, अथवा उससे भी कुछ कम ही नया ग्रंश है, शेष पूर्वपरंपरा का पुनरावर्तन है। और प्रस्तुत तुलना पर से यह भी सिद्ध हो जायगा कि परंपरा में कुछ विषयों की व्याख्या अमुक प्रकार से ही हुआ करती थी। अतएव जहाँ भी वह विषय प्राया, वहीं पूर्व परंपरा में उपलब्ध प्रायः समस्त व्याख्या-सामग्री ज्यों को त्यों रखदी जाती थी।
प्रस्तुत तुलना में जहाँ तु० शब्द दिया है वहाँ शब्दशः साम्य नहीं ; किन्तु थोड़ा पाठभेद समझना चाहिए।
अन्य संकेत इस प्रकार हैं--नि० भा०=निशीथ भाष्य । बृ० भा० बृहत्कल्प भाष्य । पू० पूर्वार्ध । उ०=उत्तरार्ध ।
भ० प्रा०=भगवती आराधना। कल्पबृहद् भाष्य का तात्पर्य बृहत्कल्प भाष्य में उद्धृत कल्पसूत्र के ही बृहद्भाष्य से है। ध्य० भा०-व्यवहार भाष्य ।
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