Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Amar Publications
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६३६३
१०१२
निशीथ : एक अध्ययन निशीथ-गा.
बृहत्कल्प-गा० १८८३ १६६६
२८७६
५२५४ २५०६
१६५५ ३०७४
१९७३ ३३६७
२८४४ ४००४
३८२७ ४०६८-१६
१८५४-५५ ४१४२-४३
५२६४-६५ ४१०७
१८६५ ४२११
५६२० ४८७३
६०६ प्राचार्यभद्र बाहु ने अपने से पूर्व की कितनी ही प्राचीन नियुक्ति गाथानों का समावेश प्रस्तुत निशीथ नियुक्ति में किया था, इस बात का पता, निशीथ चूणि के निम्न उद्धरण रो चलता है । गाथा ३२४ के लिये लिखा है
'ऐसा चिरंसमागाहा । एयाए चिरंतणगाहाए इमा भावाहुसामिका चेत्र वाखाणगाहा
- नि० गा० ३२५ उक्त उद्धरण से स्पष्ट है कि कुछ गायाए भद्रबाहु से भी प्राचीन थीं, जिनका समावेश-साथ ही व्याख्या भी, भद्रबाहु ने निशीथ-नियुक्ति में की है। चिरंतन या पुरातन गाथामों के नाम से काफी गाथाएं निशीथ नियुक्ति में संमिलित की गई हैं, ऐसा प्रस्तुत चूर्णिकार के उल्लेख से सिद्ध होता है। उदाहरणार्थ कुछ मिशीथ-गाथाएं इस प्रकार हैं : २४६, ३२४, ३८२, ११८७, १२५१ इत्यादि ।
कुछ गाथाएं ऐसी भी हैं, जिनके विषय में चूर्णिकार ने पुरातन या चिरंतन जैसा कुछ नहीं कहा है । किन्तु वे गाथाए बृहत्कल्प भाष्य में उपलब्ध हैं और वहाँ टीकाकारों ने उन्हें 'पुरातन' या 'चिरंतन' कहा है।
निशीथ गा० १६६१ बृहत्कल्प में भी है। एतदर्थ, देखिए, बृहत्कल्प गा० ३७१४ । इस गाथा को मलय गिरि ने पुरातन गाया कहा है- देखो, बृ० गा० ३७१५ की टीका।
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