Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Amar Publications
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निशीथ : एक अध्ययन
बृ०भा०
नि० भा०
व्य० भा० ३
४८५१ ७६२
नि० भा० ५६४३ ६११८ ६२८३ ६२८४-८६ ६४६८७.८
३४५-६ ३५१ ३५५ ३५६-४०३ ४०४-५
११२८-३० तु. व्य. वि. २. गा० २२१-२, व्य. वि. २, गा०२२३.२१०
६५८०-१ ६५८२ ६५८३ ६५८४ ६५८५ ६५८६ ६५०७ ६५८८-६६३१ ६६३३-४ ६६३६-७ ६६३६
६४६६.:५३५
३५४ ३५६-४०३ ४०४-५ ४०६-७ ४८८
नि० भा० ६५३६ ६५३७-८ ६५४० ६५४२ ६५४३-४६
व्य० भा०३ गा० २११ व्य. २१४-५ म्य० २६४ ३०३ ३०४-७ ३०८ ३११-६ ३१६-३६
६६४१ ६६४२-४७ ६६४६-५२ ६६५५ ६६५७ ६६५८ ६६६१
४११ ४१२-७. ४१८-२१ ४२२ ४२३ ४२८ ४२६
६५५६-७६ ६५७८ ६५७६
३४४
उक्त तुलना से यह तो सिद्ध होता ही है कि निशीथ भाष्य का अधिकांश बृहत्कल्प भाष्य और व्यवहार भाष्य से' उद्धृत है। उक्त दोनों में निशीथ से उद्धरण नहीं लिया गया, इसका कारण यह है कि स्वयं निशीथ भाष्य में ही 'कल्प' शब्द से कल्पभाष्य का उल्लेख है। अतएव यही मानना सगत है कि कल्प और व्यवहार से ही निशीथ में गाथाएं ली गई हैं । निशीथभाष्य गा० ६३५१ में 'सारणं जहा कप्पे' कह कर कल्पमाष्य की गा० १२६६ प्रादि की ओर संकेत किया है। इससे यह भी सूचित होता है कि कल्प और व्यवहार के बाद ही निशीथ भाष्य की रचना हुई है। निशीथ भाष्य गा० ४३४ में बृहत्वल्पभाष्यगत प्रथम प्रलंब-सूत्रीय भाष्य की ओर संकेत है । इससे भी कल्प भाष्य का पूर्ववर्तित्व सिद्ध है।
अब निशीथ भाष्य के रचयिता कौन थे, इस प्रश्न पर विचार किया जाता है । भाष्यकार ने स्वयं अपना परिचय, और तो क्या नाम भी, भाष्य के प्रारंभ में या अंत में कहीं नहीं दिया है । चूर्णिकार ने भी प्रादि या अंत में भाष्यकार के विषय में स्पष्ट निर्देश नहीं किया
१. कल्प और व्यवहार भाष्य के कर्ता एक ही है। देखो, वृहत्कल्प भाष्य गा० १-प्पयवहाराएं बलाण विहिं पवमामि ।' पोर व्यवहारभाष्य की उपसंहारात्मक गापा-कप्पयवहाराणं भासं'गा० १४१ उद्देश १०।
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