Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Amar Publications
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निशीथ भाष्य पार उसके कता: है। ऐसी स्थिति में भाष्यकार के विषय में मात्र संभावना ही की जा सकती है । मुनिराज श्री पुण्य विजयजी ने बृहत्कल्प भाष्य की प्रस्तावना (भाग ६,पृ० २२) में लिखा है कि "यद्यपि मेरे पास कोई प्रमाण नहीं है, फिर भी ऐसा लगता है कि कल्प (अर्थात् बृहत्कल्प), व्यवहार और निशीय लघुभाष्य के प्रणेता श्री संघदास गणि हैं। कल्प-लघुभाष्य और निशीथ लघुभाष्य इन दोनों को गाथानों के प्रति साम्य से' हम इन दोनों के कर्ता को एक मानने की अोर ही प्रेरित होते हैं."
मुनिराज श्री पुण्य विजय जी ने बृहत्कल्प लघुभाष्य की गाथा ३२८६,-जो निशीथ में भी उपलब्ध है ( गा० ५७५८),-'उदिएण जोहाउसिद्धसेणो म पस्थिवो णिज्जियससुसेणो' में पाने वाले 'सिद्धसेन' शब्द के साथ संघदास गणि के नामान्तर का तो कोई सम्बन्ध नहीं ? ऐमी शंका भी की है। उन्होंने विद्वानों को इस प्रश्न के विषय में विचार करने का आमंत्रण भी दिया है और साथ ही यह भी सूचना दी है कि निशीथ चूर्णि, पंचकल्परिण, और आवश्यक हारिभद्री वृत्ति प्रादि में सिद्धसेनक्षमाश्रमण की साक्षी भी दी गई है। तो क्या सिद्धसेन के साथ भाष्यकार का नामान्तर सम्बन्ध है, या शिष्य प्रशिष्यादिरूप सम्बन्ध है-यह सब विद्वानों को विचारणीय है।
इस प्रकार मुनिराज श्री पुण्य विजयजी के अनुसार बृहद्कल्प आदि के भाष्यकार का प्रश्न भी विचारणीय ही है। अतएव यहाँ इस विषय में यत्किंचित् विचार किया जाए तो अनुचित न होगा।
यह सच है कि चूर्णिकार या स्वयं भाष्य कार ने अपने अपने ग्रन्थों के आदि या अन्त में कहीं भी कुछ भी निर्देश नहीं किया है । तथा यह भी सत्य है कि प्राचार्य मलयगिरिने भी भाष्यकार के नाम का निर्देश नहीं किया है। किन्तु बृहत्कल्प भाष्य के टीकाकार क्षेम कीर्ति सूरि ने निम्न शब्दों में स्पष्ट रूप से संघदास को भाष्यकार कहा है। संभव है इस सम्बन्ध में उनके पास किसी परंपरा का कोई सूचना सूत्र रहा हो ?
"कल्पेऽनरूपमनर्ध प्रतिपदमर्पयति योऽर्थनिकुरुम्बम् ।
श्रीसंघदास-गणये चिन्तामणये नमस्तस्यै ॥" “अस्य च स्वल्पग्रन्थमहार्थतया दुःस्पबोधतया च सकखत्रिलोकीसुभगकरण समाश्रमण नामधेयाभिधेयः श्रीसंघदासगणिपूज्यैः ।"
प्रतिपदप्रकटितसर्वज्ञाशाविराधनासमुद्भूतप्रभूतप्रत्यपायजाल निपुणचरणकरणपरिपासनोपायगोचरविचारवाचालं सर्वथा दूषणकरणेनाप्यदूष्यं भाष्यं विरचयांचके।"
उपयुक्त उल्लेख पर से हम कह सकते हैं कि बृहत्कल्प भाष्यटीकाकार क्षेमकीर्ति ने बृहत्कल्प भाष्य के कर्ता रूप से संघदास गणि का स्पष्ट निर्देश किया है । बृहत्कल्प भाष्य और व्यवहार भाष्य के कर्ता तो निश्चित रूप से एक ही हैं, यह तो कल्प भाष्य के उत्थान और
१. मुनिराज द्वारा सूचित प्रतिसाम्य यहां दी गई तुलना से सिद्ध होता है ।
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