Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Amar Publications
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निशीथ : एक अध्ययन अब प्रश्न यह है कि निशीथ सूत्र के रचयिता कौन स्थविर थे? इस विषय में भी दो मत दिखाई देते है । एक मत पंचकल्प भाष्य चूर्णि का है, जिसके अनुसार कहा जाता है कि प्राचार प्रकल्प-निशीथ को प्राचार्य भद्रबाहु ने 'निज्जूढ' किया था - "तेण भगवता पायारपकप्पपमा-कप्प-ववहारा य नवम पुम्बनीसंदभूता निजूढा !"' किन्तु यह मत उचित है या नहीं, इसकी परीक्षा यावश्यक है । दशा श्रुत-स्कन्ध की नियुक्ति में तो उन्हें मात्र दशा कल्प, और व्यवहार का ही मूयकार कहा गया है :
"वंदामि भहवाई पाईण चरिमसगलसुयनाणिं । सुत्तम्स कारगमसिं दसासु कप्पे य क्वहारे ।।"
-दशा० नि० गा० १ इसी गाथा का पञ्चकल्प भाष्य में व्याख्यान किया गया है । वहाँ अंत में कहा है --
तत्तो चिय णिज्जूढं श्रामगहट्ठाए सपय-जतीण ।
तो सुत्तकारतो स्खलु स भवति दस-कप्प-ववहारे ॥ इससे स्पष्ट है कि पंचकल्प-भाष्यकार तक यही मान्यता रही है कि भद्रबाहु ने दशा, कल्प और व्यवहार-इन तीन छेद ग्रन्थों की रचना की है। किन्तु उसी की चूणि में यह कहा गया कि निशीथ की रचना भी भद्रवाह ने की है । अतएव हम इतना ही कह सकते हैं कि पंचकल्प भाष्यचूर्णि की रचना के समय यह मान्यता प्रचलित हो गई थी कि निशीथ की रचना भी भद्रबाह ने की थी। किन्तु इस मान्यता में तनिक भी तथ्य होता तो स्वयं निशीथ भाष्य की चूणि में आचार्य भद्रबाहु को सूत्रकार न कहकर, गणधर को सूत्रकार क्यों कहा जाता? अतएव यह सिद्ध होता है कि पंचकल्प भाष्य-चूणि का कथन निर्मूल है ।
दूसरा मत प्रस्तुत निशीथ सूत्र भाग ४, (पृ० ३६५) के अंत में दी गई प्रशस्ति के आधार पर बनता है कि निशीथ के रचयिता विशाखाचार्य थे। प्रशस्ति इस प्रकार है :
दसणचरितजुप्रो जुत्तो गुत्तीसु सजणहिएसु । नामेण विसाहगणी महत्तरओ गुणाण मंजूसा ।। कित्तीकं तिपिणद्धों जसपत्तो पडहो तिसागरनिरूदो। पुणहत्तं भमह महिं ससित्र गगण गुण तस्ल ।। तस्स लिहियं निसीहं धम्मधुराधरणपवरपुज्जस्स ।
आरोग्गं धारणिज्ज सिस्सपपिस्सोव भोज्जं च ॥ यहां पर विशाखाचार्य को महत्तरं कहा गया है और लिहियं' शब्द का प्रयोग है। 'लिहिय' शब्द से रचयिता और लेखक-ग्रन्थस्थ करने वाले दोनों ही अर्थ निकल सकते हैं। प्रश्न यह है कि निशीथ सूत्र के लेखक ये विशाखगणी कब हुए ?
१. वृहत्कल्प भाष्य भाग ६, प्रस्तावना पृ. ३ २. पूरे व्याख्यान के लिये, देखो-वृहत्कल्प माष्य भाग ६, प्रस्तावना पु० २
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