Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Amar Publications
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निशीथनियुक्ति और उसके कर्ता :
२५ थी। पट्टावलियों का अध्ययन इस बात की तो साक्षी देता है कि दोनों परंपरा की पट्टावलियां प्राचार्य भद्रबाहु तक तो समान रूप से चलती आती हैं, किन्तु उनके बाद से पृथक् हो जाती हैं । अतएव अधिक संभव यही है कि प्राचार्य भद्रबाहु के बाद ही दोनों परम्परामों में पार्थक्य हुआ है। ऐसी स्थति में निशीथ का, जो कि दोनों परम्परा में मान्य हुअा है, निर्माण संघमेद के पहले ही हो चुका होगा, ऐसा माना जा सकता है। प्राचार्य भद्रबाहुकृत माने जाने वाले व्यवहार' सूत्र में तो आचार-प्रकल्प का कई वार उरलेख भी है । अतएव स्पष्ट है कि आचार्य भद्रबाहु के समक्ष किसी न किसी रूप में प्राचारप्रकल्प-निशीथ रहा ही होगा। यह संभव है कि निशीथ का जो अंतिम रूप आज विद्यमान है उस रूप में वह, भद्रबाहु के समक्ष न भी हो, किन्तु उनके समक्ष वह किसी न किसी रूप में उपस्थित था अवश्य, यह तो मानना ही पड़ेगा। ऐसी स्थिति में निशीथ को आचार्य भद्रबाहु के समय की रचना तो माना ही जा सकता है । इस दृष्टि से वीर-निर्वाण के १५० वर्ष के भीतर ही निशीथ का निर्माण हो चुका था; इसे हम असंदिग्ध होकर स्वीकृत कर सकते हैं । एक परंपरा यह भी है कि प्राचार्य भद्र बाहु ने निशीथ की रचना की है। तब भी इसका समय वीर नि० १५० के बाद तो हो ही नहीं सकता। और एक पृथक परंपरा यह भी है कि विशाखाचार्य ने इसकी रचना की। यदि उसे भी मान लिया जाय, तब भी विशाखाचार्य, भद्रबाहु के अनन्तर ही हुए हैं, अस्तु यह कहा जा सकता है कि यह ग्रन्थ वीर निर्वाण के १७५ वर्ष के आस पास तो बन ही चुका होगा।
निशीथनियुक्ति और उसके कर्त्ता :
प्रस्तुत निशीथ सूत्र की सर्व प्रथम सूत्र-स्पशिक नियुक्ति-व्याख्या बनी है। उसमें सूत्र का सम्बन्ध और प्रयोजन प्रायः बताया गया है, तथा सूत्रगत शब्दों की व्याख्या निक्षेप-पद्धति का प्राश्रय लेकर की गई है। चूर्णिकार ने सब कहीं भाष्य और नियुक्ति का पृथक्करण नहीं किया है, प्रतः संपूर्णभावेन भाष्य से पृथक करके नियुक्ति गाथाओं का निर्देश कर देना, आज संभव नहीं रहा है। किन्तु स्वयं चूर्णिकारने यत्रतत्र कुछ गाथानों को नियुक्तगाथा रूप से निर्दिष्ट किया है। अतः उस पर से यह तो फलित किया ही जा सकता है कि निशीथ भाष्य से नियुक्ति की गाथाए' कभी पृथक् रही हैं, जिन पर भाष्यकार ने विस्तृत भाष्य की रचना की । और सब मिलाकर नियुक्ति गाथाएं कितनी थीं, यह जानना भी आज कठिन हो गया है। क्योंकि बृहत्कल्प के नियुक्ति भाष्य' की तरह प्रस्तुत में निशीथ के नियुक्ति और भाष्य भी एक ग्रन्थ
१. दशाश्रुतनियुक्ति गा० १; व्यवहार भाष्य उद्देश १०, गा० ६०३ । २. व्यव० उद्देश ३, सूत्र ३, १०; उद्देश ५, सू० १५; उद्देश ६. सू० ४-५ इत्यादि । ३. "तेण भगवता भायारपकप्प-दसा-कर-ववहरा य नवमपुम्बनीसंदभूता निजूता।"
-पंचकल्प चूणि, पत्र १; ___ यह पाठ बृहत्कल भाग ६ की प्रस्तावना में उद्धृत है । ४. 'तश्च सूत्रस्पर्शिकनियुक्त्यनुगतमिति सूत्रस्पर्शिकनियुक्ति भष्यं चैको प्रन्थो जात': ।
-वृहत्कल्प टीका पृ० २
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