Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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रामायण की दृष्टि से मिथिला बहुत ही स्वच्छ और मनोरण नगर था । ' इसके सन्निकट एक निर्जन जंगल था । महाभारत की दृष्टि से यह नगर बहुत ही सुरक्षित था । यहाँ के निवासी पूर्ण स्वस्थ थे तथा प्रतिदिन उत्सवों में भाग लिया करते थे ।
जातक की दृष्टि से विदेह राजाओं में बहुविवाह की प्रथा प्रचलित थी । वाराणसी के राजा ने यह निर्णय लिया था कि वह अपनी पुत्री का विवाह ऐसे राजकुमार से करेगा जो एकपत्नीव्रत का पालन करेगा। मिथिला के राजकुमार सुरुचि के साथ वार्ता चल रही थी। एक पत्नीव्रत की बात सुनकर वहाँ के मन्त्रियों ने कहा कि मिथिला का विस्तार सात योजन है, समूचे राष्ट्र का विस्तार ३०० योजन है, हमारा राज्य बहुत बड़ा है। ऐसे राज्य के राजा के अन्तःपुर में १६,००० रानियाँ अवश्य होनी चाहिये । ४
महाभारत के अनुसार मिथिला का राजा जनक वस्तुतः विदेह था । वह मिथिला नगरी को आग से जलते हुए तथा अपने राजप्रसादों को झुलसते हुए देखकर भी कह रहा था कि मेरा कुछ भी नहीं जल रहा है । ५
रामायण में मिथिला को जनकपुरी कहा है। विविधतीर्थकल्प में इस देश को तिरहुत्ति कहा है ६ और मिथिला को जगती (प्राकृत में जगयी) कहा है। ' इसके सन्निकट ही महाराजा जनक के भ्राता कनक थे, उनके नाम से कनकपुर बसा था । ' कल्पसूत्र के अनुसार मिथिला से जैन श्रमणों की एक शाखा मैथिलिया निकली। ९ श्रमण भगवान् महावीर ने मिथिला में छह चातुर्मास बिताये थे और अनेक बार उनके चरणारविन्दों से वह धरती पावर हुई थी । " आठवें गणधर अकम्पित की यह जन्मभूमि थी । ११ प्रत्येकबुद्ध नमि को कंकण की ध्वनि सुनकर यही पर वैराग्य उद्बुद्ध हुआ था । १२ चतुर्थ निह्नव अश्वमित्र ने वीरनिर्वाण के २२० वर्ष पश्चात् सामुच्छेदिकवाद का यहीं से प्रवर्तन किया था । १३ दशपूर्वधारी आर्य महागिरि का मुख्य रूप से विहार क्षेत्र भी मिथिला रहा है । १४ बाणगंगा और गंडक दो नदियाँ प्राचीन काल में इस नगर के बाहर बहती थी । १५ स्थानांगसूत्र में दस राजधानियों का जो उल्लेख
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ग्रिफिथ द्वारा अनुदित रामायण, अध्याय XLIII. पृ. ६८
महाभारत, वनपर्व २०६, ६-९
जातक ३१६ IV. एवं आगे
जातक IV. ४८९, पृ. ५२१-५२२
महाभारत XII. १७, १८ - १९; २१९,५०
तुलना कीजिए- उत्तराध्ययन के ९वें अध्ययन से,
देखिए - उत्तराध्ययन की प्रस्तावना। (आ. प्र. समिति, ब्यावर )
. संपइकाले तिरहुत्ति देसोत्ति भण्णई। -विविधतीर्थकल्प, पृ. ३२
विविधतीर्थकल्प, पृ. ३२
विविधतीर्थकल्प, पृ. ३२
कल्पसूत्र २१३, पृ. १९८
१०. कल्पसूत्र १२१, पृ. १७८
११. आवश्यकनिर्युक्ति, गाथा ६४४
१२. उत्तराध्ययन सुखबोधावृत्ति, पत्र १३६ - १४३
१३. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा १३१
१४. आवश्यक निर्युक्ति, गाथा ७८२
१५. विविधतीर्थकल्प पृ. ३२
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