Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति तं महाफलं खलु तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं णामगोयस्सवि सवणयाए किमंग पुण अहिगमणवंदणणमंसणपडिपुच्छणपज्जुवासणयाए ?, एगस्सवि आयरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए?, किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहण्याए ?, तं गच्छामि णं समणं भगवं महावीरं वंदामि णमंसामि सक्कारेभि सम्माणेमि कल्लाणं मंगलं चेतियं देवयं पज्जुवासाभि, एयं मे पेच्चा हियाए सुहाए खमाए णिस्सेयसाए आणुगामियत्ताए भविस्सति (प्र० तं सेयं खलु मे समणं भगवं महावीरं वंदित्तए नमसित्तए सक्कारितए सम्माणित्तए पज्जुवासित्तए) तिकट्टु एवं संपेहेइ ना आभिओगिये देवे सद्दावेइ ता एवं व०-१६। एवं खलु देवाणुपिया ! समणे भगवं महावीरे जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे आमलकप्पाए नयरीए बहिया अंबसालवणे चेइए अहापडिरूवं उग्गहं उग्गहित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ, तं गच्छह णं तुमे देवाणुप्पिया ! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे आमलकप्पं णयरिं अंबसालवणं चेइयं समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयहिणपयाहिणं करेह ना वंदह णमंसह ना साई साई नामगोयाई साहेह त्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स सव्वओ समंता जोयणपरिमंडलं जंकिंचि तणं वा पत्तं वा कट्टं वा सक्करं वा कयवरं वा असुई अचोक्खं वा पूइअं दुब्भिगंधं तं सव्वं आहुणिय आहुणिय एगंते एडेह ता णच्चोदगं णाइमट्टियं पविरलपष्फुसियं रयरेणुविणासणं दिव्वं सुरभिगंधोदयवासं वासह ता हियरयं णटुरयं भट्टरयं उवसंतरयं पसंतरयं करेह त्ता जलथलयभासुरम्पभूयस्स बिटट्ठाइस्स दसद्धवण्णस्स कुसुमस्स जाणु ( प्र०जण्णु )स्सेहपमाणमित्तं ओहिं वासं ॥ श्री राजप्रश्रीयोपांगम् ॥ पू. सागरजी म. संशोधित
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