Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 84
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गिहे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ त्ता तुरए णिगिण्हइ त्ता रहं ठवेइ त्ता रहाओ पच्चोरुहइ त्ता तं महत्थं जाव गेण्हइ त्ता जेणेव पएसी राया तेणेव उवागच्छइन्ता पएसिं रायं करयल जाव वद्धावेत्ता तं महत्थं जाव उवणेइ, तए णं से पएसी राया चित्तस्ससारहिस्सतं महत्थं जाव पडिच्छइत्ता चित्तंसारहिं सकारेइ सम्माणेइत्ता पडिविसज्जेइ, तए णं से चित्ते सारही पएसिणा रण्णा विसज्जिए समाणे हट्ठजावहियए पएसिस्स स्त्रो अंतियाओ पडिनिक्खमइ त्ता जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ त्ता चाउग्घंटं आसरहं दुरुहइ त्ता सेयवियं नगरि मझमझेणं जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ त्ता तुरए णिगिण्हइ त्ता रहं ठवेइ त्ता रहाओ पच्चोरूहइ त्ता बहाए जाव उप्पिं पासायवरगए फुट्टभाणेहिं मुइंगमत्थएहिं बत्तीसइबद्धएहिं नाडएहिं वरतरुणीसंपउत्तेहिं उवणच्चिजमाणे उवगाइजमाणे उवलालिजमाणे इढे सद्दफरिसजाव विहरइ । ५८ । नए णं केसीकुमारसमणे अण्णया कयाई पाडिहारियं पीढफलगसेज्जासंथारगं पच्चप्पिणइत्ता सावत्थीओ नगरीओ कोढगाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ त्ता पंचहिं अणगारसएहिं जाव विहरमाणे जेणेव केयइअद्धे जणवए जेणेव सेयविया नगरी जेणेव मियवणे उजाणे तेणेव उवागच्छइ त्ता अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिण्हित्ता संजमेणं तवसा अपाणंभावमाणे विहरति, तए णं सेयवियाए नगरीए सिंघाडग० महया जणसद्देइ वा० परिसा णिग्गच्छइ, तए णं ते उजाणपालगा इमीसे कहाए लद्धदा सभाणा हद्वतजावहियया जेणेव केसीकुमारसमणे तेणेव उवागच्छन्ति त्ता केसिं कुमारसमणं वंदति नमसंति ना अहापडिरूवं उगहं अणुजाणंति पाडिहारिएणं जाव संथारएणं उवनिमंतंति णामगोयं पुच्छंति त्ता II श्री राजप्रश्रीयोपांगम् ॥ [ ७३ । पू. सागरजी म. संशोधित For Private and Personal Use Only

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