Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kcbatirth.org
Acharya Shri Kalassagarsuri Gyarmandir
भंते! तुब्भंपएसिणास्त्रा काय?, अत्थ्णिं भंते! सेयवियाए नगरीए अन्ने बहवे ईसरतलवरजावसत्यवाहपभिड्यो जेणं देवाणुप्पियं| वंदिस्संतिजावपजुवासिस्संनिविलं असणंपाणंखाइमसाइमंपडिलाभिस्संतिपाडिहारिएणंपीढफलगसेज्जासंथारेणं उवनिमंतिस्संति, तए णं से केसीकुमारसमणे चिनं सारहिं एवं ०-अवियाइ चित्ता! (प्र० आविस्संति चित्ता!) जाणि (सभोसरि प्र०) स्सामो । ५६ । तए णं से चित्ते सारही केसिकुमारसमणं वंदइ नमसइ त्ता केसिस्स कुमारसमणस्स अंतियाओ कोट्ठयाओ चेइयाओ पडिणिक्खमइ त्ता जेणेव सावन्थी णगरी जेणेव रायमग्गभोगाढे आवासे तेणेव उवागच्छइ त्ता कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ त्ता एवं ३०खिय्यामेव भो देवाणुप्पिया! चाउग्घंटं आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेह जहा सेयवियाए नगरीए निग्गच्छइ तहेव जाव वसमाणे कुणालाजणवयस्स मझमझेणं जेणेव केइयअद्धे जणवए जेणेव सेयविया नगरी जेणेव मियवणे उजाणे तेणेव उवागच्छइ त्ता उजाणपालए सहावेइ ना एवं व० - जया णं देवाणुप्पिया! पासावच्चिजे केसीनामं कुमारसमणे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगाम दूइज्जमाणे इहमागच्छि ना तयाणं तुझे देवाणुप्पिया! केसिकुमारसमणं वंदिजाह नमंसिज्जाह त्ता अहापडिरूवं उग्गहं अणुजाणेज्जाह पाडिहारिएणं पीढफलग जाव उवनिमंतिजाह एयमाणत्तियं खिप्यामेव पच्चप्पिणेज्जाह, तए णते उजाणपालगा-चित्तेणं सारहिणा एवं वुत्ता समाणा हद्वतुजावहिय्या करयलपरिग्गहियं जाव एवं सामी! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणंति ५७ तए णं चित्ते सारही जेणेव सेयविया णगरी तेणेव उवागच्छइ त्ता सेयवियं नगरि मझमझेणं अणुपविसइ त्ता जेणेव पएसिस्स रण्णो श्री राजप्रश्रीयोपांगम् ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121