Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 81
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देवासुरणागसुवण्णजक्खरखसकिन्नरकिंपुरिसगरुलगंधव्वमहोरगाईहिं देवगणेहिं निग्गंथाओ पावयणाओ अणइकमणिजे निग्गंथे| पावयणे णिस्संकिए णिकंखिए णिव्वितिगिच्छे लद्धद्वे गहियद्वे पुच्छियद्धे विणिच्छियटे अभिगयढे अद्विमिंजपेभ्माणुरागरते अयमाउसो! निग्गंथे पावयणे अटे अयं परमटे सेसे अणटे असियफलिहे अवंगुयदुवारे चियत्तंतेउरघरप्पवेसे चाउद्दसमुद्दिद्वपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं सम्म अणुपालेमाणे समणे णिग्गंथे फासुएसणिजेणं असणाणखाइमसाइमेणं पीढफलगसेज्जासंथारेणं वत्थपडिग्गहकंबलपायपुंछणेणं ओसहभेसजेण य पडिलाभेमाणे २ बहूहिं सीलव्यगुणवेरमणपच्चक्खाणपोसहोववासेहि य/ अप्पाणं भावेमाणे जाई तत्थ रायकजाणिय जाव रायववहाराणि य ताई जियसत्तुणा रण्णा सद्धिं सयमेव पच्चुवेक्खमाणे २ विहरइ । ५५ । तए णं से जियसत्तू राया अण्णया कयाई महत्थं जाव पाहुडं सजेइ त्ता चित्तं सारहिं सद्दावेइ त्ता एवं व०-गच्छाहि णं तुम चित्ता! सेयवियं नगरि पएसिस्स स्त्रो इमं महत्थं जाव पाहुडं उवणेहि, मम पाउग्गं च णं जहाभणियं अवितहमसंदिद्धं वयणं विनवेहित्तिकटु विसज्जिए, तए णं से चित्ते सारही जियसत्तुणा रना विसज्जिए समाणे तं महत्थं जात हइ जाव जियसत्तुस्स रण्णो अंतियाओ पडिनिक्खमइ त्ता सावत्थीनगरीए मझूमझेणं निग्गच्छइ त्ता जेणेव रायमग्गमोगाढे आवासे तेणेव उवागच्छति त्ता तं महत्थं जाव ठवइ ण्हाए जाव सरीरे सकोरंट० पायचारविहारेण महया पुरिसवगुरापरिक्खित्ते रायमग्गमोगाढाओ आवासाओ निग्गच्छइ ता सावत्थीनगरीए मझमझेणं निग्गच्छति जेणेव कोढ़ए चेइए जेणेव केसीकुमारसमणे तेणेव उवागच्छति त्ता IM श्री राजप्रश्रीयोपांगम् ॥ यू. सागरजी म. संशोधित For Private and Personal Use Only

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