Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 80
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |अंतिए घम्म सोच्चा निसम्म जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया, तए णं से चित्ते सारही केसिस्स कुमारसमणस्स अंतिए घम्म सोच्चा निसम्म हट्ठजावहियए उठाए उढेइत्ता केसिं कुमारसमणं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं रेइ त्ता वंदइ नमसइ त्ता एवं ३०-सहहामिणं भंते! निगंथं पावयणं पत्तियामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं रोएमिणं भंते! निग्गंथं पावयणं अब्भुढेमिणं भंते! निग्गंथं पावयणं एवमेयं भंते! निग्गंथं पावयणं तहमेयं भंते! अवितहमेयं भंते!० असंदिद्धमेयं० सच्चे णं एस अढे जण्णं तुब्ये वदहत्तिकटु वंदइ नमसइ त्ता एवं ३०-जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे उग्गा भोगा जाव इब्मा इब्मपुत्ता चिच्चा हिरण्णं| चिच्चा सुवण्णं एवं धणं धनं बलं वाहणं कोसं कोडागारं पुरं अंतरं चिच्चा विउलं घणकणगरयणमणिमोत्तियसंखसिलप्पवालसंतसारसावएजं विच्छड्डइत्ता विगोवइत्ता दाणं दाइयाणं परिभाइत्ता मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पव्वयंति णो खलु अहंता संचाएमि चिच्चा हिरण्णं तं चेव जाव पव्वइत्तए अहण्णं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवजित्तए, अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं करेहि, तए णं से चित्ते सारही केसिकुमारसमणस्स अंतिए जाव पंचाणुव्वतियं जाव गिहिधम उवसंपजिताणं विहरति, तए णं से चित्ते सारही केसिकुमारसमणं वंदइनमंसइत्ताजेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव पहारेत्थ गमणाए चाउघंटें आसरहं दुरुहइ त्ता जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए 1५४ तए णं से चित्ते |सारही समणोवासए जाए अहिगयजीवाजीवे उवलद्धपुण्णपावे आसवसंवरनिज्जरकिरियाहिगरणबंधमोक्खकुसले असहिज्जे ॥ श्री राजप्रश्रीयोपांगम् ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private and Personal Use Only

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