Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 101
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | जोई विझवेजा तो णं तुभं कहाओ जोई गहाय अहं असणं० साहेज्जासित्तिकटु कट्ठाणं अडविं अणुपविट्ठा तए णं से पुरिसे तओ मुहुत्तन्तरस्स तेसिं पुरिसाणं असणं० साहेमित्तिकटु जेणेव जोतिभायणे तेणेव उवागच्छइ जोइभायणे जोई विझायमेव पासति तए णं से पुरिसे जेणेव से कटे तेणेव उवागच्छइ त्ता तं कटुं सव्वओ समंता समभिलोएति नो चेव णं तत्थ जोई पासति तए णं से पुरिसे परियरं बंधइ फरसुं गिण्हइ तं कहूँ दुहाफालियं करेइ सव्वतो समंता समभिलोएइ णो चेव णं तत्थ जोई पासइ एवं जाव संखेज्जफालियं करेइ सव्वतो समंता समभिलोएइ नो चेव णं तत्थ जोइं पासइ तए णं से पुरिसे तंसि कटुंसि दुहाफालिए वा जाव संखेजफालिए वा जोई अपासमाणे संते तंते परिसंते निविण्णे समाणे परसुं एगंते एडेइ त्ता परियरं मुयइ त्ता एवं व०-अहो! भए तेसिं पुरिसाणं असणे० नोसाहिएत्तिकटु ओहयमणसंकप्पे चिंतासोगसागरसंपविढे करयलपल्हत्थमुहे अदृज्झाणोवगए भूमिगयदिट्ठिए झियाइ, तए ण ते पुरिसा कट्ठाई छिंदंति त्ता जेणेव से पुरिसे तेणेव उवागच्छंति त्ता तं पुरिसं ओहयमणसंकल्पं जाव झियायमाणं पासंति त्ता एवं व०-किन्नं तुम देवाणुप्पिया! ओहयमणसंकप्पे जाव झियायसि?, तए णं से परिसे एवं व०- तुझेणं देवाणप्पिया कट्ठाणं अडविं अणुपविसमाणा मभं एवं व० अम्हे णं देवाणुप्पिया! कट्ठाणं अडविं जाव पविठ्ठा तए णं अहं तत्तो मुहुत्तरस्स तुझं असणं० साहेमित्तिकटु जेणेव जोई जाव झियामि, तए णं तेसिं पुरिसाणं एगे पुरिसे छेए दक्खे पत्तढे जाव उवएसलद्धे ते पुरिसे एवं व०- गच्छह णं तुझे देवाणुप्पिया ! पहाया क्यबलिकम्मा जाव हव्वमागच्छह जा णं अहं असणं० साहेभित्तिकटु In श्री राजप्रश्रीयोपांगम् ॥ ५. सागरजी म. संशोधित For Private and Personal Use Only

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