Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 93
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandie सभायरेत्ता इमेयारूवं आवई पाविज्जामि तंमा णं देवाणुप्पिया! तुब्भेहिं केई पावाईं कमाई समायरउमाणं सेऽवि एवं चेव आवई पाविजिहिइ जहा णं अहं, तस्स णं तुम पएसी! पुरिसस्स खणभवि एयम पडिसुजासि?, णो तिणद्वे समतु, जम्हा णं भंते! अवराही णं से पुरिसे, एवामेव पएसी! तववि अजए होत्था इहेव सेयवियाए णयरीए अधभ्भिए जाव णो सम्मं करभरवित्तिं पवत्तेइ से णं अम्ह वत्तव्वयाए सुबहं जाव उववन्नो तस्स णं अजगस्स तु णत्तुए होत्था इढे कंते जाव पासणयाए, से णं इच्छइ माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए णो चेव णं संचाएति हव्वमागच्छित्तए, चाहिं ठाणेहि पएसी! अहुणोववण्णए नरएसु नेरइए इच्छेज्ज माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए नो चेव णं संचाएइ, अहुणोववन्नए नरएसु नेरइए से णं तत्थ सुमहब्भूयं वेयणं वेदेमाणे माणुस्सं लोगं हव्व० णो चेव णं संचाएइ, अहणोववन्नए नरएसु नेरइए नरयपालेहिं भुजो समहिद्विजमाणे इच्छइ माणुसं लोग हव्वमागच्छित्तए नो चेव णं संचाएइ, अहुणोववत्रए नरएसु नेरइए निरयवेयणिज्जसि कम्मंसि अक्खीणसि अवेइयंसि अनिजिनसि इच्छइ माणुसं लोग० नो चेवणं संचाएइ, एवं णेरइए निरयाउयंसि कम्मंसि अक्खीणंसि अवेइयंसि अणिज्जित्रंसि इच्छइ माणुसं लोग० नो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए, इच्छएहिं चउहिं ठाणेहिं पएसी अहुणोववन्ने नरएसुनेरइए इच्छइ माणुसं लोगं० णो चेवणं संचाएइ०, तंसदहाहि णं पएसी! जहा अन्नो जीवो अन्नं सरीरं नो तंजीवो तंसरीरं ११६५। तए णं से पएसी राया केसि कुमारसमणं एवं व०-अस्थि णं भंते! एसा पण्णा उवमा० इमेण पुण कारणेण नो उवागच्छइ एवं खलु भंते! मम अजिया होत्था इहेव सेयवियाए नगरीए धम्मिया ॥ श्री राजप्रश्रीयोपांगम् ॥ [८२ पू. सागरजी म. संशोधित| For Private and Personal Use Only

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