Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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|तं पोराणमेयं सूरियामा! जाव अब्भणुनायमेयं सूरियाभा! १८ तए णं से सूरियाभे देवे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते | समाणे हट्ट जावसमणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति त्ता णच्चासण्णे णातिदूरे सुस्सूसमाणे णभंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पज्जुवासति ।१९। तए णं समणे भगवं महावीरे सूरियाभस्स देवस्स तीसे य महतिमहालिया। परिसाए जाव परिसा जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया १२० तए णं से सूरियाभे देवे, समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हतुद्वजावहयहियए उठाए उतुति त्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ त्ता एवं व०-अहनं भंते! सूरिया देवे किं भवसिद्धिए अभवसिद्धिते सम्भट्ठिी मिच्छादिट्ठी परित्तसंसारिते अणंतसंसारिए सुलभबोहिए दुल्लभबोहिए आराहते विराहते चरिमे अचरिमे ?, सूरियाभाइ! समणे भगवं महावीरे सूरियाभं देवं एवं ३०-सूरियामा! तुझं णं भवसिद्धिए णो अभवसिद्धिते जाव चरिमे णो अचरिमे |१२१। तए णं से सृरियाभे देवे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे हट्टतु४० चित्तमाणदिए परमसोमणस्से समणं भगवं महावीरं वंदति नभंसति त्ता एवं व०-तुब्ने णं भंते! सव्वं जाणह सव्वं पासह (५० सव्वओ जाणह सव्वओ पासह ) सव्वं कालं जाणह सव्वं कालं पासह सव्वे भावे जाणह सव्वे भावे पासह जाणंति णं देवाणुप्पिया मम पुदि वा पच्छ। वा इमेयारूवं दिव्वं देविडिदं दिव्द देवजुई दिव्वं देवाणुभागं लद्धं पत्तं अभिसभण्णागति तं इच्छामि णं देवाणुप्पियाणं भत्तिपुव्वगं गोयमातियाणं समणाणं निग्गंथाणं दिव्वं देविड्ढिं दिव्वं देवजुई दिव्वं देवाणुभावं दिव्यं बत्तीसतिबद्धं नट्ट विहिं उवदंसित्तए २२ तए णं समणे ॥ श्री राजप्रश्रीयोपांगम् ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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